लहर/काव्य/जयशंकर प्रसाद
1. लहर वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ? जब सावन घन सघन बरसते इन आँखों की छाया भर थे सुरधनु रंजित नवजलधर से- भरे क्षितिज व्यापी अंबर से मिले चूमते जब सरिता के हरित कूल युग मधुर अधर थे प्राण पपीहे के स्वर वाली बरस रही थी जब हरियाली रस जलकन मालती मुकुल से […]