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साहित्य रत्न
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दस्तूर ग़ज़ल का कहता है
कुण्डलिया किरण
सुन्दरकांड
रामसखा निषादराज
छन्दोअलङ्कार दर्पण
तपस्या
मधुर स्पन्दन
मुठ्ठी भर वातास
ससुराला
महकती हुई रात होगी
अँजुरी भर गीत
जहाँ ठौर मिले
आस-पास
उदगार देह
पुनः युधिष्ठर छला गया है
मंथन का निष्कर्ष
हाय री! कुमुदिनी
निर्मल देश हमारा
देगा कौन जवाब
समकालीन कुंडलियां
इक्कीसवीं सदी की कुण्डलियाँ
उसके बाद
अंतस् में रस घोले
दिनेश दोहावली
वटवृक्ष की जटाएँ और ..
अर्द्धरात्रि का नि:शब्द राग
अंकुर हुआ दरख़्त
शब्द-वीणा
रसरंगिनी
सुधियों की देहरी पर
मिथक और लोककथा ..
आनन्द मंजरी
समय की पगडंडियों पर
काव्यगंधा
शब्दों का अनुनाद
मन के मनके दोहरे
महुआ महके भोरे
प्रश्न अनोखे अभी शेष हैं
सुलगता हुआ सहरा
पत्रकारिता में प्रतक्रिया