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Month: मई 2025

अकेलापन/कविता/कुमारी सोनम

उसे अकेलेपन से प्यार था, …… मुझे अकेलेपन से डर लगता था। वो अपने आँसू छिपा लेता था, मैं अपने आँसू बहा देती थी। दोनों मिले दोनों को प्यार हुआ, लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ, उसे अकेलपन से डर लगने लगा, वो अपने आँसू छिपा न सका। उसने कहा था मुझसे ना बहाना आँसू […]

दोहा/वसंत जमशेदपुरी

यौवन के आकाश में, सुरधनुषी उल्लास। प्रणय-गंध ले बाँटती, मुट्ठी भर वातास।। मेहँदी वाले हाथ में,दिखा गुलाबी फूल। उसे मिलेगा फूल यह,जिस पर प्रभु अनुकूल।। मेहँदी रंजित हाथ हों, अधरों पर मुस्कान। मदमाते दो नयन हों,मौन निमंत्रण जान।। आँखें पत्थर-सी हुईं,प्रिय-दर्शन की आस। हाथ छोड़ मेहँदी करे,अब कुंतल में हास।। विरही मन धीरज धरो, करो […]

बाल दिवस की बधाई/कविता/वसंत जमशेदपुरी

बाल दिवस की बधाई   कूड़े के ढेर से प्लास्टिक चुनते बच्चे को डिब्बे में मिल गई बासी मिठाई | बाल दिवस की बहुत-बहुत बधाई ||   फीस नहीं भर पाया ड्रेस भी थी पुरानी सरेआम टीचर ने कर दी पिटाई | बाल दिवस की बहुत-बहुत बधाई ||   सो गया फुटपाथ पर बिछा कर […]

जल बचाएँ,जीवन बचाएँ/कविता/वसंत जमशेदपुरी

जल बचाएँ,जीवन बचाएँ जब वर्षा का पानी नदियों में और नदी का पानी समुद्र में समाता है फिर समुद्र का पानी पहले भाप और फिर बादल बन जाता है बादल पुनः बरस कर प्रकृति को सरसाता है फिर समझ में नहीं आता है कि पीने का पानी आखिर कहाँ चला जाता है कहीं यह हमारी […]

कविता/वसंत जमशेदपुरी

ईंट ढंग से जोड़िए यह क्या कर रहे हैं आप धड़ाधड़ ईंट जोड़ रहे हैं न तौल न माप गारा भी  नहीं डाल रहे हैं ठीक से हर ईंट भाग रही है पहले की लीक से कोई तिरछी है तो कोई आड़ी है अंधा भी कह देगा यह मिस्त्री अनाड़ी है अरे!आप घर बना रहे […]

मुक्तक/वसंत जमशेदपुरी

तुम धरती हो मैं अंबर हूँ,तुम सरिता मैं सागर हूँ | तुम वृषभानु लली कुसुमांगी,मैं नटखट नट नागर हूँ | तुम मरीचिका हो मरुधर की,मैं हूँ मदमाता सावन- तप्त देह को सिंचित करने,आया ले जल-गागर हूँ |     जिस सावन में मेघ न बरसे,वह सावन क्या सावन है | परिरंभन की चाह न हो […]

महकी है यह रजनीगंधा/सजल/वसंत जमशेदपुरी

महकी है यह रजनीगंधा या तेरे तन की खुशबू है | अलकें लहराईं हैं तूने या चंदन-वन की खुशबू है || तेरी इस उन्मुक्त हँसी पर तीनों लोक निछावर शुभदे | तेरे अधरों से निःसृत यह नंदन कानन की खुशबू है || कस्तूरी-मृग-सा चंचल मैं इधर-उधर नजरें दौड़ाऊँ | अब तक समझ नहीं पाया क्यों […]

हर अँधेरी वीथिका को जगमगाना चाहता हूँ/सजल/वसंत जमशेदपुरी

हर अँधेरी वीथिका को जगमगाना चाहता हूँ | गीत कोई प्रीति का मैं गुनगुनाना चाहता हूँ || प्रीति हो तो राधिका-सी कुछ न चाहा श्याम से | प्रीति की यह रीति ही सबको सिखाना चाहता हूँ || दूर तुम मुझसे रहो स्वीकार यह मुझको नहीं | जिस तरह भी हो जुगत मैं पास आना चाहता […]

सुबह-सुबह कोयल का गाना/सजल/वसंत जमशेदपुरी

सुबह-सुबह कोयल का गाना,अच्छा लगता है | प्रियजन से मिलना-बतियाना,अच्छा लगता है || रजनीगंधा,जुही,चमेली,शेफाली महके | उपवन में भँवरों का आना, अच्छा लगता है || उसकी गलियों में गुल चुनना, कौन नहीं चाहे | दामन में खुशबू भर लाना,अच्छा लगता है || कलियों-सा मुस्काना उसका,शहदीली बातें | बात-बात पर खिल-खिल जाना अच्छा लगता है || […]

मुझको तो सागर से गहरा/गीत/वसंत जमशेदपुरी

कर मेरे  पतवार थमा दो तो ही पार लगे। मुझको तो सागर से गहरा प्रिय का प्यार लगे।। हहराती नगपति से उतरी , चट्टानों से  टकराती । कुछ इतराती , कुछ घबराती, मन ही मन में पछताती। पिया-मिलन की आस सँजोए, बाबुल का घर छोड़ चली- टेढे़-मेढे़ रस्ते नापे, मैं इठलाती बलखाती । मुझको जीवन […]

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