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Month: मई 2023

जीवन तो एक बंजारा है/शुभ्रा बाजपेयी

जीवन तो एक बंजारा है । जो फिरता मारा मारा है ॥ इसका तो ध्येय मौत केवल , विधना ने किया इशारा है । यह दो पल सिर्फ हमारा है । जीवन तो एक बंजारा है ॥ यह गीत खुशी और गम के लेकर , मानव काया की बस्ती में । कुछ मधुर और कुछ […]

सपनों को जीवन दे बैठा/राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

प्रेम यज्ञ की आहुति बनकर, मैं जीवन का शिखर हो गया। तुम जीकर रह सके न जीवित, मैं मरकर भी अमर हो गया।। सुलग रही हैं अब तक आहे, जिनको तुमने सुलगाया था यों तो है उपहार तुम्हारा, किन्तु आँच तुम सह न सकोगे। जिस एकाकी निर्जन वन में, मैंने काटी उमर विरह की उसमें […]

माँ/रचना निर्मल

1.माँ  माँ गंगा सी  निश्छल  जिसके दो किनारे  समाज और  संस्कार  समेट लेती है जो सबके गम और भर देती है नई उमंग  बच्चों संग अठखेलियां करती है तो शांत हो जाती बड़ों में  जानती है झूठ और सच पर बनी रहती है अंजान  लगी रहती है धोने अपनों के मन में जमी फरेब की […]

उसके हिस्से का आसमान/अंजू शर्मा

आज भी मेट्रो में आज बहुत भीड़ है। वैसे कश्मीरी गेट आने से पहले भीड़ तो हो ही जाती है। यहाँ से कई लाइन्स जो जुड़ी हैं। जहाँ तक देखो अपने सपनों का पीछा करते चेहरों की भीड़ नज़र आती है।  वह अब तक मोबाइल में न्यूज हंट सर्च कर रही थी, अब उसकी निगाहें […]

माँ की थैली/माधुरी “अदिति”

माँ की थैली, गठरी, बस्ते में… माँ अपने बच्चे को हर चीज़ दे देना चाहती है दुनिया की हर चीज़ समेट लेना चाहती है थैला /गठरी/बस्ते में । आम, कच्ची-कैरी, निबोरी, ऑंवला , इमली , मसाला ,और अचार भी , दाल-चावल-सब्जी, दही कपड़े और जाने क्या-क्या, जानती है , कि चल न सकेंगी ता-उम्र उसकी […]

मानवता करे पुकार/डॉ अंजु दुआ जैमिनी

मानवता करे पुकार इस देश में हर धर्म के  लोग बसते हैं, शायद तभी,  त्रिशूल और डंडे  बंटते हैं।  कुछ बहुसंख्यक  तो कुछ अल्पसंख्यक रहते हैं, तभी दोनों बराबर बराबर मरते हैं, खून के प्यासों की पुकार  जंगल के शेर भी   डरते हैं, मानव को दानव में बदलते देख  दानव सहमते हैं,  कहाँ खो गया […]

गज़ल-नौच कर खा गया/मुझको सज़ा देगा दिल/कृष्णा शर्मा ‘दामिनी’

उसने इक बार जो बोला कभी मुमताज़ मुझे उड़ गया ले के मेरा जज़्ब ए परवाज़ मुझे तू अकेला है कहां हर जगह हाज़िर मैं हूँ दे के तो देख कभी धीरे से आवाज़ मुझे अपने बचपन की सहेली से भी गर बात करूँ देखे मशकूक नज़र से मेरा हमराज़ मुझे एक मुद्दत से अधूरी […]

स्मृतियां/सरिता अंजनी सरस

स्मृतियां स्नो फॉल सी है गिरती हैं और जम जाती हैं बर्फ सी…. रेत के मानिंद फिसल चुका अतीत अपने वर्तमान में कितना कड़वा होता है स्मृतियों में उतना ही सुंदर। कोरोना का कहर और युद्ध की विभीषिका के बीच वक्त ने सदमे भरी एक गहरी सांस ली एकाएक पेड़ों के पत्ते झुलस गए। पक्षियों […]

गँवार/नगेन्द्र फौजदार

अमावस्या की सघन होती रात के अँधेरे में एक आशा की किरण ढूँढ़ रहे रोहित को — जो कि एक ३० वर्षीय बेरोजग़ार अध्यापक है — आज एक नंगी सच्चाई अन्दर तक बोझिल कर रही थी ! एक तरफ, हज़ारों विद्यार्थियों को शिक्षक का आदर्श रूप दिखाने वाले उच्च शिक्षा प्राप्त वरिष्ठ अध्यापक ‘अ’ जी […]

जेठ की दुपहर/डॉ मृत्युंजय कोईरी

रामधन कुशवाहा खाट से उठा। हाथ-मुँह धोये, मिर्च भरता के साथ रात का बचाखुचा बासी भात खा लिया और एक लोटा पानी गटगटा गया। सिर पर मशीन उठाया। कंधे में पाइप और कुदाल, हाथ में बाल्टी, रस्सी तथा अन्य सामान पकड़कर खेत की सिंचाई करने निकल पड़ा। खेत की सिंचाई करने का एक मात्र साधन […]

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