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Month: अप्रैल 2023

हिन्दी और महिला साहित्यकार/अलका शर्मा

हजारों वर्षों तक अवहेलना की बलि वेदी पर चढी हुई महिलाओं ने आज के युग में अपनी सामर्थ्य को पहचानकर प्रगति पथ पर आगे क़दम बढ़ाए हैं। कोई भी क्षेत्र हो अपनी योग्यता को साबित किया है। साहित्य के क्षेत्र में भी महिलाएं पीछे नहीं हैं।इस क्षेत्र में भी अपने सामर्थ्य को सिद्ध कर रही […]

बात करने दो/मयंक श्रीवास्तव

और कितने दिन अभी मेरी जरूरत है तुम मुझे अनुयायियों से बात करने दो। पांव बंध पाए नहीं मेरे शिथिलता से हर डगर पर चल रहे अब भी सुगमता से साथ मेरा और कितने दिन निभाएंगी तुम मुझे परछाइयों से बात करने दो। बात करने दो गग्न धरती हवाओं से भावनाओं से कलम से वेदनाओं […]

रिश्ते का पंचनामा/श्यामल बिहारी महतो

” मैं तुम्हें बेटा कहूं या साढू …?” बाप रामदीन भरी पंचायत में इकलौते बेटे राधेश्याम से बार बार पूछता रहा । और बेटा राधेश्याम बार बार यही कहता रहा-“ आप मेरे बाप हो और बाप ही रहोगे….! राधेश्याम राधा की ओर देख रहा था । और राधा-राधेश्याम की ओर । इतिहास के पन्नों में […]

सँवरकी/धीरज श्रीवास्तव

आज अचानक हमें अचम्भित, सुबह-सुबह कर गयी सँवरकी। कफ़ ने जकड़ी ऐसे छाती, खाँस-खाँस मर गयी सँवरकी। जूठन धो-धोकर,खुद्दारी, बच्चे दो-दो पाल रही थी। विवश जरूरत जान बूझकर, बीमारी को टाल रही थी। कल ही की तो बात शाम को ठीक-ठाक घर गयी सँवरकी। लाचारी पी-पीकर काढ़ा ढाँढस रही बँधाती मन को। आशंकित थी, दीमक […]

पुनः शकुनि की कपट-चाल से, एक युधिष्ठिर छला गया है/राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

पुनः शकुनि की कपट-चाल से, एक युधिष्ठिर छला गया है। घर-घर वही हस्तिनापुर सी, कुटिल विसातें बिछी हुई हैं। चौसर-चौसर छल-छद्मों से, ग्रसित गोटियाँ सजी हुई हैं। दरबारी हैं विवश सभा में, कौन धर्म का पासा फेंके कौन न्याय-अन्याय बताये, सबकी आँखें झुकी हुई हैं। लगता है चेहरों पर इनके, रंग स्वार्थ का मला गया […]

इस जीवन का क्या एतबार करुं/लखनलाल माहेश्वरी

इस जीवन का क्या एतबार करुं जीवन में कुछ नही है मेरा क्या विचार करुं जीवन संघर्ष का एक डेरा है संघर्ष से लडकर जीवन बेकार करुं। । इन सांसो का कोई एतबार नहीं है अंत समय में साथ नहीं देती है क्या पता इन सांसो का कब रुक जाएं यह दुनिया पल भर में […]

जब घर में बच्चे भूखे हों/चन्द्रगत भारती

हूं अगर अयोध्या का वासी हरिद्वार नही लिख पाऊंगा जब घर में बच्चे भूखे हों श्रृंगार नही लिख पाऊंगा ।। गोरखपुर के स्टेशन पर कुछ बच्चे जीवन काट रहे बस ढूंढ ढूंढ कर कूड़े में खाने की पत्तल चाट रहे मै गाली की सौगातों को उपहार नही लिख पाऊंगा ।। माँ सरयू के पावन तट […]

जानते सब धर्म आँसू/धीरज श्रीवास्तव

जानते सब धर्म आँसू। वेदना के मर्म आँसू। चाँद पर हैं ख्वाब सारे हम खड़े फुटपाथ पर! खींचते हैं बस लकीरें रोज अपने हाथ पर! क्या करे ये ज़िन्दगी भी आँख के हैं कर्म आँसू। जानते सब धर्म आँसू। वेदना के मर्म आँसू। आज वर्षों बाद उनकी याद है आई हमें! फिर वही मंजर दिखाने […]

घर का कोना कोना अम्मा/धीरज श्रीवास्तव

अपने घर का हाल देखकर,चुप रहना मत रोना अम्मा । सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा । खेत और खलिहान बिक गये इज्जत चाट रही माटी ! अलग अलग चूल्हों में मिलकर भून रहे सब परिपाटी ! नज़र लगी जैसे इस घर को,या कुछ जादू टोना अम्मा । सन्नाटे में बिखर गया […]

किंतु अधूरा प्यार न देना/अशोक बाजपेयी

किंतु अधूरा प्यार न देना मन मधुबन में फूल खिला कर तड़पन की मझधार न देना । जी लूंगा मैं याद सहारे , किंतु अधूरा प्यार न देना । सुमन खोजता रहा जगत में , शूलों का प्रतिदान मिला । मन का विश्वास हुआ घायल , जब अपनों से सम्मान मिला । दंश भरा मेरा […]

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