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Month: नवम्बर 2024

कुंडलिया छंद की विकास यात्रा/आलेख/डॉ. बिपिन पाण्डेय

कुंडलिया शब्द की उत्पत्ति ‘कुंडलिन’ या ‘कुंडल’ शब्द से हुई है। कुंडल का अर्थ है- गोल अथवा वर्तुलाकार वस्तु। सर्प के बैठने की मुद्रा ‘कुंडली’ कहलाती है। जब वह बैठता है तो उसकी पूँछ और मुख आपस में एक दूसरे के पास दिखते हैं। कुंडलिया शब्द सर्प की इसी कुंडली की आकृति से लिया गया […]

बरसात के बादल/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

छा गये आकाश में बरसात के बादल ! गरजते , नभ घेरते ये जलद कजरारे झूमते ज्यों मत्त कुंजर क्षितिज के द्वारे बजा देंगे हर दिशा की आज ये साँकल ! ग्रीष्मदग्धा धरा का अब तप फलित होगा हर्ष से मन खिल उठेगा तन हरित होगा थिरकते पग में सजेगी बूँद की पायल ! लगेंगे […]

धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे मंजिल वाली राह लिखेंगे खुशियों के कोलाहल में जो दबी-दबी है आह, लिखेंगे। बादल काले – उजला पानी निशा-गर्भ में उषा सुहानी रंग-गन्ध की कथा चल रही श्रोता विवश शूल अभिमानी सतत् सत्य-सन्धानी हैं हम कैसे हम अफ़वाह लिखेंगे! जलता एक दीप काफ़ी है चाहे जितना तम हो गहरा कब रुकते हैं […]

विश्वास का सम्बल/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

शब्द को जब आचरण का बल मिलेगा अर्थ को विश्वास का सम्बल मिलेगा। तपिश हो अनुभूतियों में आपकी जब आग बोलें रंग में डूबे हुए अहसास हों तब फाग बोलें दर्द बोलेंगे अगर-दिल भी छिलेगा। बैठकर तट तरंगों पर तराने गढ़ना सु-कर है पार जाना धार का प्रतिकार कर बिल्कुल इतर है सामना सच का […]

मजा कुछ और है/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय

फूंक कर चलने में खतरे का नहीं है डर, मगर तेज चलने का मज़ा कुछ और है। ज़िन्दगी प्रतियोगिता है साहसी ही जीतता है पवन-गति से बढ़ चला जो पुतलियों में लक्ष्य ले उसको ही होना यहाँ सिरमौर है। हरी लकड़ी-सा धुआँना जल न सकना-बुझ न पाना कहीं बेहतर चार पल ही धधक कर जो […]

जब हवाओं में है आग की-सी लहर/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

जब हवाओं में है आग की-सी लहर देखिए, खिल रहे गुलमोहर किस क़दर! हौसले की बुलन्दी न कम हो कभी आदमी के लिए ही बना हर शिखर उस तरफ़ का किनारा न उसके लिए जिसके भीतर भरा डूब जाने का डर ज़िन्दगी बे-उसूलों की ऐसी लगे जैसे बे-शाख़, बिन पत्तियों का शजर चाँदनी में चिराग़ों […]

बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा बहरों की महफ़िल में गा कर क्या होगा! आस्तीन में जिसने पाला साँप यहाँ कहिए उस से हाथ मिलाकर क्या होगा! नाजुक है,नादाँ है-संभाले रखिए दिल दीवारों से टकरा कर क्या होगा! काग़ज के ये फूल रंग है,गंध नहीं इनसे पूजन – थाल सजा कर क्या होगा! जो भी […]

किससे किसकी यारी है/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

किससे किसकी यारी है दुनिया कारोबारी है ! जाल बिछा है, दाने हैं दुबका वहीं शिकारी है ! मंचों पर जोकर काबिज प्रहसन क्रमशः जारी है ! बुझे-बुझे खुद्दार लगें दमक रहा दरबारी है ! सुख तो एक छलावा है दुख की लम्बी पारी है !

दर्द की आँच सीख लो सहना/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

दर्द की आँच सीख लो सहना चाहते हो अगर ग़ज़ल कहना फायदा रेत-घर बनाने का चन्द लम्हों में जिसे है ढहना तैरने का गुमान तिनकों को जिनको लाचार लहर में बहना! सादगी वो कि रंग शर्माये चाँद को चाहिए कहाँ गहना ? शुभ्र चादर न दागदार बने जब ले रहना कबीर-सा रहना ।

प्रश्न/कविता/रवीन्द्र उपाध्याय

नहीं गढ़े चाक पर हमने सूरज, चाँद और मिलती है हमें ढेर धूप-चाँदनी मौसम नहीं सजाये हमने और सेंकता है जेठ भिंगोता है सावन हमें भी हमारे हाँके नहीं चलती बयार और साँस लेने के लिए पूरे आज़ाद हैं हम अनाज, हाँ पसीने से सींच-सींच हमने उगाये हैं अनाज तब भी दाने-दाने को क्यों हैं […]

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