पानी तेरे नाम है/सुशील सरित

पानी तेरे नाम है, कितने-कितने रूप।

जहां नज़र डाली मिले, सारे रूप अनूप।।-1

है औषधि सम शुद्ध जल, तन को करे निरोग।

हो अशुद्ध तो जल यही, दे कितने ही रोग।।-2

पानी  जमकर जब गिरे, बने वो ओला मीत।

गिरकर जमता तो बरफ, कहें उसे यह रीत।।-3

पानी हो यदि फूल पर, कहलाता वह ओस।

निकले फूलों से बने, इत्र उड़ाए होश।।-4

बहता पानी है नदी, जमा हुआ तो झील।

भंवर बने तो तुरत ही, जाता जीवन लील।।-5

पानी है यदि शुद्धतम, तो गंगा की धार।

हो अशुद्ध तो दे सदा, तन को कष्ट अपार ।।-6

मिले दूध में तो बने, पानी दूध समान।

मय में मिलकर मय बने, खोकर अपना मान।।-7

कहते हैं इस सृष्टि का, पानी है प्रारंभ।

लेकिन रखता यह नहीं, मन में कोई दम्भ।।-8

पानी से ही यह धरा, लगती जैसे पर्व।

अपनी पर आ जाए तो, टूटें सबके गर्व।।-9

पांच तत्व हैं प्रकृति में, कहता है विज्ञान।

पानी ही इनमें मगर, है प्रधान लें जान।।-10

पानी के सम्मान को, कैसे जाएं भूल।

कहते पानीदार को, एक शब्द है शूल।।-11

सागर मंथन की कथा, का इतना सा सार।

जो मन को मथ ले मिले, उसको रतन अपार।।-12

सुशील सरित

पानी तेरे नाम है/सुशील सरित

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