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दोहा

दोहा/डॉ. बिपिन पाण्डेय

लोभी ढोंगी लालची,झूठे चोर लबार। बन बैठे जनतंत्र के ,सारे पहरेदार।।1 सूरज कहता मैं हरूँ,धरती का अँधियार। मुझको नहीं पसंद है,जुगनू का किरदार।। 2 गाँवों में खंभे गड़े ,खिंचे हुए हैं तार। बिल आते बिजली नहीं,किससे करें गुहार।।3 चेहरे पर मासूमियत, दिल में है तूफ़ान। अपना हक़ है माँगता,हर मज़दूर किसान।।4 मिलती है सम्मान निधि,नहीं […]

दोहे (माँ का राज़)/डॉ. बिपिन पाण्डेय

माँ की  वाणी में मिले, सद्ग्रंथों  का सार। उसकी ममता के बिना,जीवन है निस्सार।।1   माँ के हाथों से बनी, चीजों में हो स्वाद । सबको ऐसे तृप्ति दे, जैसे कथा प्रसाद ।।2 मात-पिता इस जगत में,ईश्वर  रूप समान। इनके शुभ आशीष में ,प्रभु का हो वरदान।।3 उतने भी सिक्के नहीं,देता कमा कुमार। माँ ने […]

दोहे/अनन्त आलोक

बिल्ली रस्ता काटती, होती है बदनाम l मुझको अपना काम है, उसको अपना काम l1l हिंदी की चौपाल पर, बैठे चार चिराग | तय था देंगे रौशनी, लगा रहे हैं आग |2| लेखक तो लेखक हुआ, बेशक झोला छाप | पुस्तक तेरी जेब में, जितनी मर्जी छाप |3| सोते उठते फोन से, होती आँखें चार […]

दोहा/तारकेश्वरी ‘सुधि’

पेड़ भगाएँ आपदा , भूख , गरीबी , रोग । देते  हैं  ताज़ी  हवा ,  काया  रखें  निरोग॥1 पेट भरा हो तन ढका, हर मुख पर मुस्कान। करो  दुआ  अपना  बने, ऐसा  देश  महान।।2 पेड़ हवा में हो रही , कब  से  लम्बी  बात । पावस में निकले सभी , छुपे हुए जज़्बात ।।3 बना  […]

दोहे/रैदास

ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिलै सबन को अन्न। छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न।।1 करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस। कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।।2 कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा। वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।3 कह रैदास […]

दोहे/कबीर

दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय॥१॥ तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय । कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय॥२॥ माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर॥३॥ […]

बाहर पहरा ज्ञान का ,भीतर हरि का वास/दिलजीत सिंह रील

पांव चूम पगडंडियां ,सब को रहीं नवाज़ । जहां कहीं जाती नहीं, सड़कें दूर दराज।। सरल हृदय पगडंडियां, करें पथिक से प्रीत । मंजिल तक पहुंचाएंगी ,बढे चलो दिलजीत।। पापी धर्मी कौन है, भेद न मन में लाए । पगडंडी सद् भाव से, सब का बोझ उठाए।। रमी चरण रज साधु की, पगडंडी के भाल […]

जगत रेल में चल रहे, भांति भांति के लोग/दिलजीत सिंह रील

खींचे इंजिन राम का, चले जगत की रेल। लाख चुरासी सीट की,कस कर रखे नकेल।। जगत रेल में चल रहे, भांति भांति के लोग। जैसा भाड़ा कोच का, वैसी सुविधा भोग।। चलता इंजिन ऐकला, आपस में कर मेल । डिब्बा डिब्बा जोड़ कर, सरपट दौड़े रेल ।। रेल पटरियों पर चले, जीवन भी इक रेल। […]

याद बहुत आई मुझे, जब पीपल की छाँव/डॉ कृष्णकुमार नाज़

याद बहुत आई मुझे, जब पीपल की छाँव । सारे  बंधन  तोड़कर,  पहुँचा  अपने  गाँव ।।-1 इच्छाओं ने जब धरा, आशाओं  का  रूप। साँस-साँस सूरज उगे, पग-पग फैली धूप।।-2 या तो यह अभिशाप है, या कोई  वरदान। पलकों पर आँसू सजे, होंठों पर मुस्कान।।-3 बदल गई कुछ इस तरह नये जगत की चाल। सच्चाई   निर्धन   […]

सारा जग रोशन हुआ, रात हुई गुलजार/बिनोदानंद झा

कई मर्ज की है दवा, अपनेपन का भाव। खुश रहना जो चाहते, सबसे रखें लगाव।।-1 मां तुलसी-सी पूज्य हैं, पिता बरगदी छांव। भाव-करों से रोज ही, पूजें उनके पांव।।-2 सारा जग रोशन हुआ, रात हुई गुलजार। एक दीप के सामने, गया अंधेरा हार।।-3 एक झोपड़ी तोड़कर, महल बनाते चार। करते हैं भू माफिया, कपटी कारोबार।।-4 […]

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