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नफ़रत ही रह गयी है मुहब्बत चली गयी/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

नफ़रत ही रह गयी है मुहब्बत चली गयी
घर से हमारे रूठ के बरकत चली गयी

हम भी ख़ुशी के नाज़ उठाते कहां तलक
अच्छा हुआ कि घर से मुसीबत चली गयी

दो भाइयों के बीच की नफ़रत न पूछिए
घर से निकल के बात अदालत चली गयी

अच्छा था हम ग़रीब थे इन्सानियत तो थी
ग़ुरबत से जान छूटी शराफ़त चली गयी

दौलत का ये ग़ुरूर भी कितना अजीब है
दस्तार बच गयी तो रियासत चली गयी

ख़ंजर चला न ख़ून का दरिया बहता कोई
नज़रों से क़त्ल कर के क़यामत चली गयी

आवाज़ अपने दिल की मैं सुनता भी किस तरह
दुनिया के शोरगुल में समाअत चली गयी

 

दस्तार-पगड़ी,समाअत-आवाज़

लेखक

  • प्रेमकिरण प्रकाशन- 'आग चखकर लीजिए', 'पिनकुशन', 'तिलिस्म टूटेगा' (हिन्दी ग़ज़ल संग्रह), ज़ह्राब (उर्दू ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित। ग़ज़ल एवं कविता के विभिन्न साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित। इनके अतिरिक्त हिन्दी एवं उर्दू की पत्रिकाओं में ग़ज़ल कविता, कहानी, फीचर, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षा, कला समीक्षा, साहित्यिक आलेख प्रकाशित। संपादन: समय सुरभि ग़ज़ल विशेषांक । अनुवाद प्रसारण: नेपाली एवं बंगला भाषा में ग़ज़लों का अनुवाद। सम्मान: डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर' सम्मान से सम्मानित (2005)। दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान से सम्मानित (2006)। शाद अजीमाबादी सम्मान (2007)। बिहार उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित (2009) प्रसारण: दूरदर्शन, आकाशवाणी, पटना के हिन्दी एवं उर्दू विभाग से कविता, कहानी एवं ग़ज़लें प्रसारित तथा अनेक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शिरकत । संपर्क: कमला कुंज, गुलज़ारबाग, पटना-800007 मो. : +91-9334317153 ई-मेल : premkiran2010@gmail.com

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