+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

होगी कोई वो दिलनशीँ , वरना तो आजकल कहाँ/गज़ल/संजीव प्रभाकर

इतनी मिली नसीब से, गाहे-ब-गाहे ज़िन्दगी,

गुज़री मेरे क़रीब से, गाहे-ब-गाहे ज़िन्दगी!

होगी कोई वो दिलनशीँ , वरना तो आजकल कहाँ,

मिलती किसी ग़रीब से, गाहे-ब-गाहे-गाहे ज़िन्दगी।

आयी है ले के साथ में कोई न कोई इंकलाब,

जब भी मिली सलीब से, गाहे-ब-गाहे-ज़िन्दगी।

जिसको न भर सकी कभी, दिल की उसी दरार को,

नापा करे जरीब से, गाहे-ब-गाहे ज़िन्दगी।

जो है हुआ, हुआ ही क्यों, मर्ज़ ये लाईलाज क्यों,

पूछा करे तबीब से, गाहे-ब-गाहे ज़िन्दगी।

लेखक

  • संजीव प्रभाकर जन्म : 03 फरवरी 1980 शिक्षा: एम बी ए एक ग़ज़ल संग्रह ‘ये और बात है’ प्रकाशित और अमन चाँदपुरी पुरस्कार 2022 से पुरस्कृत आकाशवाणी अहमदबाद और वडोदरा से ग़ज़लों का प्रसारण भारतीय वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त सम्पर्क: एस-4, सुरभि - 208 , सेक्टर : 29 गाँधीनगर 382021 (गुजरात) ईमेल: sanjeevprabhakar2010@gmail.com मोब: 9082136889 / 9427775696

    View all posts
होगी कोई वो दिलनशीँ , वरना तो आजकल कहाँ/गज़ल/संजीव प्रभाकर

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×