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समझती है तू मेरी मज़बूरियों को/गज़ल/संजीव प्रभाकर

मेरी साहिबा ! ये मेरी कैफ़ियत है,

उधर ख़ैरियत तो  इधर ख़ैरियत है।

मेरा दिल न लगता कहीं महफ़िलों में,

तुम्हारे बिना हर जगह बोरियत है।

तुम्ही से शुरू ख़त्म होती तुम्ही पे,

मेरी ज़िन्दगी में तेरी अहमियत है।

समझती है तू मेरी मज़बूरियों को,

महब्बत की होती यही ख़ासियत है।

तुम्हारे जवाबों का मै मुन्तज़िर हूँ,

लिखा मैने ख़त में वो मम्नूनियत है।

लेखक

  • संजीव प्रभाकर जन्म : 03 फरवरी 1980 शिक्षा: एम बी ए एक ग़ज़ल संग्रह ‘ये और बात है’ प्रकाशित और अमन चाँदपुरी पुरस्कार 2022 से पुरस्कृत आकाशवाणी अहमदबाद और वडोदरा से ग़ज़लों का प्रसारण भारतीय वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त सम्पर्क: एस-4, सुरभि - 208 , सेक्टर : 29 गाँधीनगर 382021 (गुजरात) ईमेल: sanjeevprabhakar2010@gmail.com मोब: 9082136889 / 9427775696

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