दोहा

उनका ही टी.वी. हुआ/राजेन्द्र वर्मा

कठिन  तपस्या  से  मिला,  हमको  ऐसा  राज। कुछ को छप्पन भोग तो, कुछ को सड़ा अनाज।।-1 आरक्षण से हो रहा, जिनका हृदय अशांत। वे  कैसे  लागू  करें, समता  का  सिद्धांत ॥-2 इधर तनी बंदूक है , उधर भौंकते श्वान। हिटलर बैठा बाँटता, लोकतंत्र का ज्ञान॥-3 उनका ही टी.वी. हुआ, उनका ही अख़बार। अब ख़बरें  वे  […]

सोच रही है द्रौपदी/रघुविन्द्र यादव

दिनभर खायी मछलियाँ, किया रात को जाप। बगुले  ने  यूँ  धो  लिये,      अपने  सारे  पाप।।-1 खेती-बाड़ी का नहीं, जिन्हें तनिक भी ज्ञान| बना  रहे  वे  नीतियाँ,   कैसे  बचें  किसान?-2 दीपक का  होता रहा, हर  युग  में  गुणगान| किसने रेखांकित किया, बाती का बलिदान||-3 जला  उम्रभर  दीप- सा,    करता  रहा  उजास| उसकी खातिर अब कहाँ, वक़्त […]

जिनका सरल स्वभाव है, मिलता उन्हें दुलार/त्रिलोक सिंह ठकुरेला

भावों की चिर सम्पदा, होती सदा अमोल । निष्ठुर मन के सामने, ये गठरी  मत खोल ।।-1 जाने क्या हो किस घड़ी, किसको यह आभास । कहाँ  राम को राजसुख , कहाँ विषम वनवास ।।-2 जिनका सरल स्वभाव है, मिलता उन्हें  दुलार । सागर  सूखें  प्रेम  के,  देख  कुटिल  व्यवहार ।।-3 बहती  है  जीवन  नदी, […]

दीन व्यक्ति पर कीजिए/दिनेश प्रताप सिंह चौहान

रावण के वध में भला, क्या था मेरा काम। ‘मैं’ ने  मारा  था  उसे, बोले  माँ  से  राम।।-1 कई जन्म के पुण्य जब, फलते हैं सरकार। तब इस मानव योनि का, दे ईश्वर उपहार।।-2 दौलत में जो है नशा, कब दे  सकी  शराब। माया का होता नशा, सबसे अधिक खराब।।-3 सेवा मानव जाति की, मानें […]

नेह बहन का ढुलक जब/डॉ. जे. पी. बघेल

नेह बहन का ढुलक जब, झरे नयन के पार । भाई का तब देखिए, झांक आँख  से  प्यार ।।-1 मानव के प्रति प्रेम का, जिसके मन में वास । आता  है  कर्त्तव्य का, बोध  उसी  के पास ।।-2 मिला बड़ों से जब मुझे, प्रेम सहित आशीष । मन  मेरा  जो रंक था, पल  में  हुआ  […]

भीतर भीतर रम गया/हरीलाल ‘मिलन ‘

भीतर भीतर रम गया, क्या  गृहस्थ क्या संत । न तो प्रेम का आदि है,  न  ही   प्रेम का अंत ।।-1 मन -मंदिर में थी बसी,  कोई    मूर्ति  महान । प्राण-प्रतिष्ठा कर गई,   अधरों   की मुस्कान ।।-2 सच ही कहा  कबीर  ने,  वही  सिद्ध  विद्वान । ‘ढाई आखर ‘ प्रेम का,  जिसे  हो  गया  ज्ञान […]

बिगड़ गया   पर्यावरण/डॉ मंजु गुप्ता

बिगड़ गया   पर्यावरण , उठने लगे सवाल। मानव के निज स्वार्थ से, प्रकृति हुई बेहाल।।-1 जब से जंगल कट रहे , ऋतुएँ  हैं बेजान। बीमारी, सूखा  सदा , बुला रहा  इंसान।।-2 दूषित पर्यावरण का , नर खुद  जिम्मेदार। बुला रहा बीमारियाँ  , मानवता  बेजार।।-3 छेद हुआ ओजोन में, बढ़ा सूर्य का ताप। जीव जंतु भी […]

माँ  है  तो  परिवार में/गाफिल स्वामी

माँ  है  तो  परिवार में, खुशियाँ और मिठास । बिन माँ के परिजन कभी, बैठ सके ना पास ।।-1 माँ की ममता प्यार का, है  विशाल  संसार । लिख ना पाया आज तक, कोई रचनाकार ।।-2 जन जीवन औ जगत का, है ये अटल विधान । करनी  का  फल  एक  दिन, पाता  हर  इंसान ।।-3 […]

पानी तेरे नाम है/सुशील सरित

पानी तेरे नाम है, कितने-कितने रूप। जहां नज़र डाली मिले, सारे रूप अनूप।।-1 है औषधि सम शुद्ध जल, तन को करे निरोग। हो अशुद्ध तो जल यही, दे कितने ही रोग।।-2 पानी  जमकर जब गिरे, बने वो ओला मीत। गिरकर जमता तो बरफ, कहें उसे यह रीत।।-3 पानी हो यदि फूल पर, कहलाता वह ओस। […]

ठहर न पाया किंतु मैं/याद राम शर्मा

अंदर सौम्य स्वभाव का,जब विस्तृत आकाश । तब  रिश्तों  में धुंध को, करता  कौन  तलाश ।।-1 गरज-भाव ने जब किया, छल-बल को स्वीकार । तब  अतिवादी  सोच  का, हुआ  और  विस्तार ।।-2 मैंने तो सच ही कहा, लगा मुझे  जो  ठीक । ठहर न पाया किंतु मैं, अपनों के नजदीक ।।-3 असतभाव,अतिवाद की, हुई धार […]