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ग़ज़ल

नफ़रत ही रह गयी है मुहब्बत चली गयी/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

नफ़रत ही रह गयी है मुहब्बत चली गयी घर से हमारे रूठ के बरकत चली गयी हम भी ख़ुशी के नाज़ उठाते कहां तलक अच्छा हुआ कि घर से मुसीबत चली गयी दो भाइयों के बीच की नफ़रत न पूछिए घर से निकल के बात अदालत चली गयी अच्छा था हम ग़रीब थे इन्सानियत तो […]

रोना नहीं आता हमें हंसना नहीं आता/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

रोना नहीं आता हमें हंसना नहीं आता हर शख्स को जीने का सलीक़ा नहीं आता तूफ़ान में संभले तो फंसे आ के भंवर में दुख आता है लेकिन कभी तन्हा नहीं आता कीचड़ में कंवल आप है अपने लिए तमसील फूलों में किसी को ये सलीक़ा नहीं आता इस नाव का पतवार भी मांझी भी […]

कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या हम हुए भी हैं कभी आबाद क्या ख़्वाब की नगरी रियासत है मेरी और दे जाते मेरे अजदाद क्या फूल से चेहरे हुए बे आब क्यों मौसमों की फिर पड़ी उफ़्ताद क्या कोई मैना है न बुलबुल शाख़ पर बाग़बां भी हो गये सैय्याद क्या हो गयी तहज़ीब अपनी […]

चलते चलते आ गया ये कैसा रस्ता सामने/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

चलते चलते आ गया ये कैसा रस्ता सामने दूर तक फैला हुआ है घुप् अंधेरा सामने सब सियासत ही के गंदे खेल में मसरूफ़ हैं डर रहा हूंं देख कर अंजामे-फ़र्दा सामने सहमे सहमे से हैं बच्चे हंसती गुड़िया देखकर कल धमाके में मरा था एक बच्चा सामने आंधियों का दौर है ये हर शजर […]

कंवल उस झील के सारे उदास रहते हैं/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

कंवल उस झील के सारे उदास रहते हैं हंसेंगे कब वो शिकारे उदास रहते हैं नदी की तेज़ रवानी में बह गये कुछ लोग जो रह गये हैं किनारे उदास रहते हैं मेरी ही तर्ह उन्हें इंतज़ार है तेरा अब आ भी जा कि सितारे उदास रहते हैं घरों में आग लगा कर जो मुस्कुराते […]

सुर्ख़रू होकर हंसेंगे सुब्ह के मंज़र कभी/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

सुर्ख़रू होकर हंसेंगे सुब्ह के मंज़र कभी ये अंधेरे ख़ून थूकेंगे जमीनों पर कभी मौसमों का सिलसिला यूं ही रहा तो देखना फूल पत्थर बन के बरसेंगे तुम्हारे घर कभी इक परिंदे का लहू तूफ़ान लेकर आयेगा आग बन जायेंगे ये नोचे हुए शहपर कभी याद आता है मुझे हंसता हुआ नन्हा दिया काटने को […]

असर उसके जादू का ऐसा हुआ/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

असर उसके जादू का ऐसा हुआ मैं सोया हुआ हूं न जाग हुआ अब उसका सितारा बुलंदी पे है जिसे छू लिया वो सितारा हुआ ़ वो क़तरे से दरिया बना एक दिन तभी क़ह्र सा हम पे बरपा हुआ परिंदे ठिकाने बदलने लगे फ़िज़ाओं में है ज़ह्र फैला हुआ मैं क़ातिल को क़ातिल कहूं […]

मज़हब के इस जुनून का बतलायें हाल क्या/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

मज़हब के इस जुनून का बतलायें हाल क्या बोये हुए को काट रहे हैं मलाल क्या गुलशन लहूलुहान मनाज़िर से भर गया कुछ वहशियों ने ओढ़ ली इंसा की खाल क्या बेचैन लग रही हैं समुंदर मेंं मछलियां कश्ती मेंं नाख़ुदा ने छुपाया है जाल क्या खेतों मेंं धूल उड़ती नज़र आई चार सू भारी […]

अभी तलक तो थीं दोनों के दरम्यां बातें/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

अभी तलक तो थीं दोनों के दरम्यां बातें जो हद से गुज़रीं तो पहुंची यहां वहां बातें हम एक छत के तले अजनबी से रहते हैं किसी से कोई भी करता है अब कहां बातें हम अपनी अपनी अना पर अड़े रहे तो फिर सुलझ न पायेंगी दोनों के दरम्यां बातें हमें ही ढूंढ़ना है […]

ता’उम्र ज़माने से बना कर नहीं रक्खा/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

ता’उम्र ज़माने से बना कर नहीं रक्खा हमने किसी चौखट पे कभी सर नहीं रक्खा उगता हुआ सूरज तो मुसव्विर ने दिखाया तस्वीर में जलता हुआ मंज़र नहीं रक्खा ये दुनिया नहीं वो जो तसव्वुर में है मेरे ताबीर को ख़्वाबों के बराबर नहीं रक्खा काग़ज़ के हसीं फूल ने आंखों को लुभाया दिल में […]

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