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ग़ज़ल

ज़मीं पर पाँव हिम्मत बाँध कर जो धर ही लेते हैं /ग़ज़ल/रचना निर्मल

ज़मीं पर पाँव हिम्मत बाँध कर जो धर ही लेते हैं सफ़र  मुश्किल हो जितना भी वो पूरा कर ही लेते हैं भरोसा होता है जिनको ख़ुदा की ज़ात पर देखो दुआ से शादमानी का वो कासा भर ही लेते हैं  भरेगी जेब कैसे कौन सी फ़ाइल दबाने से ये सारे फ़ैसले कुछ क्लर्क और […]

ज़ख़्म दिल पर हज़ार खाती हूँ/ग़ज़ल/रचना निर्मल

रस्म-ए-दुनिया मैं जब निभाती हूँ ज़ख़्म दिल पर हज़ार खाती हूँ सोते-सोते भी मुस्कुराती हूँ ख़्वाब आँखों में जब सजाती हूँ साँस लगती है टूटने मेरी दर्द जब दिल का गुनगुनाती हूँ दिल में बहता है अश्कों का दरिया ख़ुद को बेबस मैं जब भी पाती हूँ तुझसे मिलने की प्यास की ख़ातिर तेरे दर […]

एशियाई हुस्न की तस्वीर है मेरी ग़ज़ल/अदम गोंडवी

एशियाई हुस्न की तस्वीर है मेरी ग़ज़ल मशरिकी फन में नई तामीर है मेरी ग़ज़ल सालहा जो हीर व राँझा की नज़रों में पले उस सुनहरे ख़्वाब की तामीर है मेरी ग़ज़ल इसकी अस्मत वक्‍त के हाथों न नंगी हो सकी यूँ समझिए द्रौपदी की चीर है मेरी ग़ज़ल दिल लिए शीशे का देखो संग […]

महज़ तनख़्वाह से निपटेंगे क्या नखरे लुगाइ के/अदम गोंडवी

महज़ तनख़्वाह से निपटेंगे क्या नखरे लुगाइ के। हज़ारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के । ये सूखे की निशानी उनके ड्राइंगरूम में देखो, जो टी० वी० का नया सेट है रखा ऊपर तिपाई के । मिसेज़ सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं, पिछली बाढ़ के तोहफ़े हैं, ये कंगन कलाई के। […]

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में/अदम गोंडवी

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें संसद बदल […]

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है/अदम गोंडवी

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आंकिए असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पे आबाद है जिस शहर में मुंतजिम अंधे हो जल्वागाह के उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है ये नई पीढ़ी पे मबनी है […]

घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है/अदम गोंडवी

घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है । बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है । भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारिन-सी, ये सुब‍हे-फ़रवरी बीमार पत्नी से भी पीली है । बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में, मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली […]

जिस्म क्या है, रुह तक सब कुछ खुलासा देखिए/अदम गोंडवी

जिस्म क्या है, रुह तक सब कुछ खुलासा देखिए । आप भी इस भीड़ में घुसकर तमाशा देखिए । जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिज़ाज, उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए । जल रहा है देश, यह बहला रही है क़ौम को, किस तरह अश्लील है संसद की भाषा […]

टी०वी० से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो/अदम गोंडवी

टी०वी० से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो । फिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो । बह गए कितने सिकन्दर वक़्त के सैलाब में, अक़्ल इस कच्चे घड़े से कैसे दरिया पार हो । सभ्यता ने मौत से डर कर उठाए हैं क़दम, ताज की कारीगरी या चीन की दीवार हो । […]

जिसके सम्मोहन में पाग़ल, धरती है, आकाश भी है/अदम गोंडवी

जिसके सम्मोहन में पाग़ल, धरती है, आकाश भी है । एक पहेली-सी ये दुनिया, गल्प भी है, इतिहास भी है। चिन्तन के सोपान पर चढ़कर चाँद-सितारे छू आए, लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है । मानव-मन के द्वन्द्व को आख़िर किस साँचे में ढालोगे, महारास की पृष्ठभूमि में ‘ओशो’ का संन्यास […]