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शह्र के चैरास्तों पर लाल-पीली बत्तियाँ/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

शह्र के चैरास्तों पर लाल-पीली बत्तियाँ,
रहनुमाई कर रहीं हैं रंग-रंगीली बत्तियाँ।

आज भी घर अपने शायद देर से पहुँचूँगा मैं,
रास्ता रोके खड़ी हैं लाल-पीली बत्तियाँ।

बिछ गईं गलियों में लाशें और घरौंदे जल चुकेे,
आ गईं पुरशिस को कितनी लाल-नीली बत्तियाँ।

बन्द कर कमरे की खिड़की आ मेरे पहलू में आ,
खोल दे बिस्तर पे मेरे दो नशीली बत्तियाँ।

शह्र का सच झील के दामन पे लिक्खा है ’नज़र’,
थरथराती बिल्ड़िगें और गीली-गीली बत्तियाँ।

लेखक

  • ए.एफ़. ’नज़र’

    ए.एफ़. ’नज़र’ जन्म -30 जून,1979 गाँव व डाक- पिपलाई, तहसील- बामनवास ज़िला- गंगापुर सिटी (राज), पिन- 322214 मोबाइल - 9649718589 Email- af.nazar@rediffmail.com

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शह्र के चैरास्तों पर लाल-पीली बत्तियाँ/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

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