चराग़-फूल-सितारों की जान ले ली है,
तेरी अदाओं ने कितनों की जान ले ली है।
तुम्हारी सुर्ख़ हँसी पर निसार हैं कलियाँ,
तुम्हारे होंठों ने फूलों की जान ले ली है।
न फूल महके न पेड़ों पे कोयलें बोलीं,
तेरे ग़मों ने बहारों की जान ले ली है।
वो चाहते थे कि दरिया को बाँध कर रक्खें,
इस एक ज़िद ने किनारों की जान ले ली है।
गुज़रना जिससे तुम्हें खेल लग रहा है ’नज़र’
उसी भँवर ने हज़ारों की जान ले ली है।
लेखक
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ए.एफ़. ’नज़र’ जन्म -30 जून,1979 गाँव व डाक- पिपलाई, तहसील- बामनवास ज़िला- गंगापुर सिटी (राज), पिन- 322214 मोबाइल - 9649718589 Email- af.nazar@rediffmail.com
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