आदमी में आदमीयत की कमी होने लगी
मौत से भी आज बदतर ज़िंदगी होने लगी
जाल ख़ुद ही था बनाया क़ैद ख़ुद उसमें हुए
फिर बताओ अब तुम्हें क्यों बेबसी होने लगी
याद को अब याद करके याद भी धुँधला रही
लग रहा तुमसे मिले जैसे सदी होने लगी
चाँद, सूरज थे बने सबके लिये इक से यहाँ
रौशनी फिर क्यों बपौती महलों की होने लगी
बेच डाले हैं बज़ारों में सभी एहसास अब
आज आँखों में यहाँ झूठी नमी होने लगी
कब हवा का मोल जाना मुफ़्त थी इफ़रात थी
बोतलों में बंद है अब क़ीमती होने लगी
आज आँसू बह रहे ‘गरिमा’ क़लम की नोंक से
घाव से रिसते लहू से शायरी होने लगी
लेखक
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गरिमा सक्सेना पिता : महेश चंद्र सक्सेना माता : रीता सक्सेना पति : अंजुल खरे जन्मतिथि : 29 जनवरी 1990 शिक्षा : बी. टेक (इलेक्ट्राॅनिक्स एंड इन्सट्रयूमेंटेशन) प्रकाशित कृतियाँ- 1-दिखते नहीं निशान(दोहा संग्रह) 2-है छिपा सूरज कहाँ पर (नवगीत संग्रह) 3- हरसिंगार झरे गीतों से (गीत संग्रह) 4- एक नयी शुरुआत (दोहा संग्रह) 5- कोशिशों के पुल (नवगीत संग्रह) 6- चेहरे का जयपुर हो जाना (प्रेमगीत संग्रह) संपादित कृतियाँ- दोहे के सौ रंग (सौ रचनाकारों का सम्मिलित दोहा संग्रह) भाग१, भाग२, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, संवदिया पत्रिका के दोहा विशेषांक का अतिथि संपादन पत्र - पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन सम्मान- उ. प्र. हिंदी संस्थान द्वारा बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' पुरस्कार, हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहाबाद द्वारा युवा लेखन कविता सम्मान, नवगीत साहित्य सम्मान (नवगीतकार रामानुज त्रिपाठी स्मृति) सहित दर्जनों संस्थाओं से सम्मानित। लेखन विधाएँ : गीत, ग़ज़ल, दोहा, कविता, लघुकथा आदि। सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन, कवर डिजायनिंग, चित्रकारी स्थायी संपर्क : एफ-652, राजा जी पुरम, लखनऊ, उत्तर प्रदेश-226017 वर्तमान संपर्क : मकान संख्या- 212 ए-ब्लाॅक, सेंचुरी सरस अपार्टमेंट, अनंतपुरा रोड, यलहंका, बैंगलोर, कर्नाटक-560064 मो : 7694928448 ईमेल-garimasaxena1990@gmail.com
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