खेत, पर्वत, पेड़, झरने और समुन्दर देखकर
रश्क होता है मुझे धरती के ज़ेवर देखकर
नीर, नभ, सूरज, धरा, कचनार, केसर देखकर
सिर झुका जाता है ईश्वर तेरे जौहर देखकर
आँख नम हो जाती है उजड़े घरों की बस्ती पे
बीता बचपन था जहाँ वो प्यारा नैहर देखकर
जो उगाती नफ़रतों की फ़स्ल है इस मुल्क में
रंज होता है नयी नस्लों के तेवर देखकर
एक गौरेया ने सीखा था नया उड़ना अभी
आज है सहमी हुई बिखरे हुए पर देखकर
उसकी खामोशी पे मत जा, आग है वो आब भी
दंग रह जाएगा इक तूफ़ान भीतर देखकर
कर ले पैदा ख़ुद में जज़्बा मुश्किलों से लड़ने का
फिर न हट पायेगा पीछे, राह दूभर देखकर
लेखक
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डॉ. कविता विकास ( लेखिका व शिक्षाविद्) प्रकाशन - दो कविता संग्रह (लक्ष्य और कहीं कुछ रिक्त है )प्रकाशित। एक निबंध संग्रह (सुविधा में दुविधा),एक ग़ज़ल संग्रह (बिखरे हुए पर) प्रकाशित। अनेक साझा कविता संग्रह और साझा ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित। । (परवाज़ ए ग़ज़ल, १०१ महिला ग़ज़लकार,हिंदी ग़ज़ल का बदलता मिज़ाज,२०२० की नुमाइंदा ग़ज़लें, इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवीं साल की बेहतरीन ग़ज़लें, इस दौर की ग़ज़लें - १, आधी आबादी की ग़ज़लें, ग़ज़ल त्रयोदश ) प्रकाशित। हंस,परिकथा,पाखी,वागर्थ,गगनांचल,आजकल,मधुमती,हरिगंधा,कथाक्रम,साहित्य अमृत,अक्षर पर्व और अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं व लघु पत्रिकाओं में कविताएँ ,कहानियाँ ,लेख और विचार निरंतर प्रकाशित । दैनिक समाचार पत्र - पत्रिकाओं और ई -पत्रिकाओं में नियमित लेखन । राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित। झारखंड विमर्श पत्रिका की सम्पादिका और अनेक पत्रिकाओं के विशेषांक के लिए अतिथि संपादन । संपर्क - फ़्लैट नम्बर -टी/1801, सेक्टर - 121, होम्स - 121,नॉएडा, पिन-201301, उत्तर प्रदेश ई मेल – kavitavikas28@gmail.com मोबाइल - 9431320288
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