+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

है शरारा ये मुहब्बत का,हवा मत देना/गज़ल/डॉ. कविता विकास

है शरारा ये मुहब्बत का,हवा मत देना जो सुलग ही गया दिल में तो दबा मत देना जिनसे तहज़ीबों की सौगात मिली है तुमको उनसे ही मान तुम्हारा है,गँवा मत देना बाद मुद्दत के कहीं और ये दिल उलझा है सो चुके ख़्वाबों को तुम फिर–से जगा मत देना मेरे हमसाज़ करम इतना ही करना […]

इस इश्क़ के बीमार पे पूरी नहीं उतरी/गज़ल/डॉ. कविता विकास

इस इश्क़ के बीमार पे पूरी नहीं उतरी कोई दवा उपचार पे पूरी नहीं उतरी मायूस हुए नभ को ही तकते हुए हलधर बरसात भी आसार पे पूरी नहीं उतरी लाचारी न बेकारी ही मिट पाई है इससे सरकार यूँ दरकार पे पूरी नहीं उतरी धंधा न कमाई रही, खर्चा हुआ दूना मेहनत मेरी परिवार […]

जीवन से दिलदारी रख/गज़ल/डॉ. कविता विकास

जीवन से दिलदारी रख पर मरने से यारी रख गिरने का मत रोना रो कोशिश अपनी ज़ारी रख अपनी सीमा में ही रह चाह कभी मत भारी रख मज़बूरी कितनी भी हो फिर भी तू ख़ुद्दारी रख नर्म मिज़ाज मधुर वाणी आँखों में मनुहारी रख ज़िम्मेदार कभी तो बन मत हरदम लाचारी रख भीड़ सघन […]

घटा काली है छायी आसमानों में/गज़ल/डॉ. कविता विकास

घटा काली है छायी आसमानों में जगी उम्मीद है फिर से किसानों में उड़ेंगी बेटियाँ भी पंख फैला कर करो मत बंद घर के कैदख़ानों में वहीं मिलती है टूटन और तन्हाई है शोहरत और दौलत जिन घरानों में बचेगी सृष्टि यह उनकी बदौलत ही भरी सम्भावना है नन्हीं जानों में मिला कर कंधे से […]

खेत, मेघ, दरिया की बात अब पुरानी है/गज़ल/डॉ. कविता विकास

खेत, मेघ, दरिया की बात अब पुरानी है खोयी गाँव ने अस्मत, थम गयी रवानी है अब न सजतीं चौपालें, पेड़ कट गये सारे आम ,नीम, पीपल की अब कहाँ निशानी है गाँव में जो बसता था वो किधर गया भारत प्यार और अपनापे की महज कहानी है छा गया है फैशन भी उनके ज्ञान […]

कभी अच्छा नहीं होता किसी रिश्ते का मर जाना/गज़ल/डॉ. कविता विकास

करो कोशिश तो लाजिम है सभी ज़ख्मों का भर जाना कभी अच्छा नहीं होता किसी रिश्ते का मर जाना बचा ले अपनी उम्मीदों के सूरज को तू ढलने से बुरा है ग़म के कोहरे का किसी दिल में पसर जाना तेरे पहलू में आकर ऐ मुहब्बत मैंने देखा है मुकद्दर का सँवर जाना मुकद्दर का […]

न ही कोई परेशानी न बीमारी दिखाते हैं/गज़ल/डॉ. कविता विकास

न ही कोई परेशानी न बीमारी दिखाते हैं जो पेड़ों फूलों नदियों से सदा यारी दिखाते हैं शराफ़त ओढ़ कर ख़ुद को सदाचारी दिखाते हैं महात्मा भी हैं कुछ ऐसे जो मक्कारी दिखाते हैं हुनरवालों  के हक़ में ही हवाएँ हैं बहा करतीं वे बदहाली में जीने की कलाकारी दिखाते हैं जिन्हें वह सींच कर […]

रश्क होता है मुझे धरती के ज़ेवर देखकर/गज़ल/डॉ. कविता विकास

खेत, पर्वत, पेड़, झरने और समुन्दर देखकर रश्क होता है मुझे धरती के ज़ेवर देखकर नीर, नभ, सूरज, धरा, कचनार, केसर देखकर सिर झुका जाता है ईश्वर तेरे जौहर देखकर आँख नम हो जाती है उजड़े घरों की बस्ती पे बीता बचपन था जहाँ वो प्यारा नैहर देखकर जो उगाती नफ़रतों की फ़स्ल है इस […]

नौ से पांच वाली नौकरी है/गज़ल/डॉ. कविता विकास

जो नौ से पांच वाली नौकरी है हमें तो आज भी लगती भली है नहीं पड़ती समय की मार उस पर विचारों में रखे जो ताज़गी है गला घुट जाए अरमानों का जिसमें भला वो ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी है ग़मों में भी ठहाके जो लगाए हर इक में वो कहाँ ज़िंदादिली है जहाँ उसने कभी […]

पूजने लगे हैं हम जिन दिनों से पत्थर को/गज़ल/संजीव प्रभाकर

सरकशी है लहजे में तल्खियाँ हैं तेवर में, इन दिनों ये आलम है शहर शहर घर घर में। पूजने लगे हैं हम जिन दिनों से पत्थर को, उन दिनों से हम शायद ढल रहे हैं पत्थर में। जब मिला अकेले में तब पता चला मुझको, शख्श है वही लेकिन एक और  पैकर में। हम पहुँच […]

×