जिस एक में मैं जिस एक में तू उस एक- मय की तलाश में हूँ,
जो एक मुझ में जो एक तुझ में उस एक शय की तलाश में हूँ।
न लग्न की मैं तलाश में हूँ न जुस्तजू है कोई महूरत,
न मैं रहूँ मैं न तू रहे तू उसी समय की तलाश में हूँ।
इस एक घट से उस एक घट में जड़ और चेतन कि चर-अचर में
जो एक सब में धड़क रहा, मैं उसी हृदय की तलाश में हूँ।
न योनियों की मुझे है ख़्वाहिश न जन्म-जन्मों की जुस्तजू है,
जिस एक वय में उसे समझ लूँ उस एक वय की तलाश में हूँ।
न मंद सप्तक न मध्य सप्तक न तार सप्तक तलाश मेरी ,
जिस एक लय में उसे सुनूँ मैं उस एक लय की तलाश में हूँ।
मय की तलाश में हूँ/गज़ल/संजीव प्रभाकर