दुआ हमारे प्यार की हुई कुबूल उस जगह,
जहाँ जहाँ मिले थे हम खिले हैं फूल उस जगह।
हमारे बाद भी कई गये थे झूल उस जगह,
पढ़े गये महब्बतों के सब उसूल उस जगह।
निशां अभी भी है वहाँ हमारे ऐतबार का,
उड़ाये जा रही हवा सदी से धूल उस जगह।
निकल पड़ा है अब वहाँ रिवायतों का सिलसिला,
मज़ाक़ ही मज़ाक़ में जो की थी भूल उस जगह।
जहाँ पे धड़कनों की बात धड़कनों से हो गयी,
रिवाज रस्म सब मुझे लगे फ़िज़ूल उस जगह।
लेखक
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संजीव प्रभाकर जन्म : 03 फरवरी 1980 शिक्षा: एम बी ए एक ग़ज़ल संग्रह ‘ये और बात है’ प्रकाशित और अमन चाँदपुरी पुरस्कार 2022 से पुरस्कृत आकाशवाणी अहमदबाद और वडोदरा से ग़ज़लों का प्रसारण भारतीय वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त सम्पर्क: एस-4, सुरभि - 208 , सेक्टर : 29 गाँधीनगर 382021 (गुजरात) ईमेल: sanjeevprabhakar2010@gmail.com मोब: 9082136889 / 9427775696
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