तेरी हर ख़ुशी का ख़याल हो, तेरी बेबसी का पता रहे,
मेरे प्यार को तू ख़ता कहे ,जो हुई ख़ता तो ख़ता रहे।
तेरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ रुबाई है,तेरी गुफ़्तगू है ग़ज़ल मेरी,
मेरी नज़्म को तू क़ता कहे, जो क़ता कहे तो क़ता रहे।
मेरी चुप्पियों का असर मुझे यूँ तो मुश्किलों से बचा गया,
किसे क्या पता वही आजकल मुझे शोर बन के सता रहे।
न यक़ीन था तेरी बात पर,मुझे लग रही है सहीह अब,
नहीं फ़िक्र है किसी बात की, मुझे फ़ासले ही सता रहे।
वो न दूसरे कोई और हैं मेरे दोस्त हैं मेरे यार हैं,
मेरी दोस्ती के जवाब में ,हक़े-दुश्मनी जो जता रहे।
मेरी ख़ूबियों को बढ़ा गया, मेरी ख़ामियों का वजूद ही,
हुए वाक़ये से भी कम-से-कम, मेरे हौसले का पता रहे।
जो हुई ख़ता तो ख़ता रहे/गज़ल/संजीव प्रभाकर