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घटा काली है छायी आसमानों में/गज़ल/डॉ. कविता विकास

घटा काली है छायी आसमानों में

जगी उम्मीद है फिर से किसानों में

उड़ेंगी बेटियाँ भी पंख फैला कर

करो मत बंद घर के कैदख़ानों में

वहीं मिलती है टूटन और तन्हाई

है शोहरत और दौलत जिन घरानों में

बचेगी सृष्टि यह उनकी बदौलत ही

भरी सम्भावना है नन्हीं जानों में

मिला कर कंधे से कंधा चलो यारो

रखा क्या है भला आपस के तानों में

यूँ ही मत छोड़ दो इन नौनिहालों को

दख़ल भी दो कभी इनके फ़सानों में

गुलों पर रंग चढ़ता देख वाज़िब है

कि बढ़ जाए शिकन अब बागबानों में

उन्हीं गीतों में रमता है ये मन कविता

महक माटी की आती जिन तरानों में

लेखक

  • डॉ. कविता विकास

    डॉ. कविता विकास ( लेखिका व शिक्षाविद्) प्रकाशन - दो कविता संग्रह (लक्ष्य और कहीं कुछ रिक्त है )प्रकाशित। एक निबंध संग्रह (सुविधा में दुविधा),एक ग़ज़ल संग्रह (बिखरे हुए पर) प्रकाशित। अनेक साझा कविता संग्रह और साझा ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित। । (परवाज़ ए ग़ज़ल, १०१ महिला ग़ज़लकार,हिंदी ग़ज़ल का बदलता मिज़ाज,२०२० की नुमाइंदा ग़ज़लें, इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवीं साल की बेहतरीन ग़ज़लें, इस दौर की ग़ज़लें - १, आधी आबादी की ग़ज़लें, ग़ज़ल त्रयोदश ) प्रकाशित। हंस,परिकथा,पाखी,वागर्थ,गगनांचल,आजकल,मधुमती,हरिगंधा,कथाक्रम,साहित्य अमृत,अक्षर पर्व और अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं व लघु पत्रिकाओं में कविताएँ ,कहानियाँ ,लेख और विचार निरंतर प्रकाशित । दैनिक समाचार पत्र - पत्रिकाओं और ई -पत्रिकाओं में नियमित लेखन । राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित। झारखंड विमर्श पत्रिका की सम्पादिका और अनेक पत्रिकाओं के विशेषांक के लिए अतिथि संपादन । संपर्क - फ़्लैट नम्बर -टी/1801, सेक्टर - 121, होम्स - 121,नॉएडा, पिन-201301, उत्तर प्रदेश ई मेल – kavitavikas28@gmail.com मोबाइल - 9431320288

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