इक नज़र डाले न कोई सरसरी भी/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली
इक नज़र डाले न कोई सरसरी भी। बह्र से ख़ारिज़ हुई क्या ज़िंदगी भी।। कोई सोचे कोई समझे कोई बूझे। कोई तो देखे हमारी बेबसी भी।। याद अब मंज़र कोई रहता नहीं है। आंख से जाती रही है रोशनी भी।। बज़्म में तूफान सा बरपा रही है। बोलती कितना है तेरी ख़ामुशी […]