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ग़ज़ल

जब हवाओं में है आग की-सी लहर/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

जब हवाओं में है आग की-सी लहर देखिए, खिल रहे गुलमोहर किस क़दर! हौसले की बुलन्दी न कम हो कभी आदमी के लिए ही बना हर शिखर उस तरफ़ का किनारा न उसके लिए जिसके भीतर भरा डूब जाने का डर ज़िन्दगी बे-उसूलों की ऐसी लगे जैसे बे-शाख़, बिन पत्तियों का शजर चाँदनी में चिराग़ों […]

बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा बहरों की महफ़िल में गा कर क्या होगा! आस्तीन में जिसने पाला साँप यहाँ कहिए उस से हाथ मिलाकर क्या होगा! नाजुक है,नादाँ है-संभाले रखिए दिल दीवारों से टकरा कर क्या होगा! काग़ज के ये फूल रंग है,गंध नहीं इनसे पूजन – थाल सजा कर क्या होगा! जो भी […]

किससे किसकी यारी है/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

किससे किसकी यारी है दुनिया कारोबारी है ! जाल बिछा है, दाने हैं दुबका वहीं शिकारी है ! मंचों पर जोकर काबिज प्रहसन क्रमशः जारी है ! बुझे-बुझे खुद्दार लगें दमक रहा दरबारी है ! सुख तो एक छलावा है दुख की लम्बी पारी है !

दर्द की आँच सीख लो सहना/ग़ज़ल/रवीन्द्र उपाध्याय

दर्द की आँच सीख लो सहना चाहते हो अगर ग़ज़ल कहना फायदा रेत-घर बनाने का चन्द लम्हों में जिसे है ढहना तैरने का गुमान तिनकों को जिनको लाचार लहर में बहना! सादगी वो कि रंग शर्माये चाँद को चाहिए कहाँ गहना ? शुभ्र चादर न दागदार बने जब ले रहना कबीर-सा रहना ।

आंख से उनके जो हया निकले/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

आंख से उनके जो हया निकले। मिलने-जुलने का रास्ता निकले।।   रूह से तो निकल नहीं पाए। इक बदन से तो बारहा निकले।।   शौक हो हमको आजमाने का। देखकर घर से आइना निकले।।   जो वफाओं की बात करते थे। दोस्त मेरे वो बेवफा निकले।।   देखकर भी हमें नहीं देखा। वो हमें करके […]

आपसे मेरा कहां रिश्ता अलग है/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

आपसे मेरा कहां रिश्ता अलग है। सच कहें तो इश्क़ की दुनिया अलग है।।   जीतकर दुनिया चलो फिर हार जाएं। हमको दुनिया से ज़रा चलना अलग है।।   क्यों बहाने कर रहे हो छोड़ भी दो। साफ कह दो आपको रहना अलग है।।   आप ने ही आंख हमसे फेर ली थी। आपको हमने […]

नक़्श सब अपने मिटाते जाते/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

नक़्श सब अपने मिटाते जाते। मुझको दिल से भी भुलाते जाते।।   फूल तुरबत पर चढ़ाते जाते। रस्मे-उल्फ़त ही निभाते जाते।।   तुम हो दरिया हो मयस्सर सबको। प्यास मेरी भी बुझाते जाते।।   है बड़ी सादा तुम्हारी डीपी। एक फोटो तो लगाते जाते।।   साथ जीने की कसम खाई थी। एक वादा तो निभाते […]

हुई है मुहब्बत हमें शायरी से/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

हुई है मुहब्बत हमें शायरी से। निभाएं कहां तक भला ज़िंदगी से।।   दुखों ने तो यारो गले से लगाया। मिली कब ख़ुशी हमको इतनी ख़ुशी से।।   बहुत याद आए गुज़ारे वो लम्हे। कभी हम जो गुज़रे हैं उसकी गली से।।   जहां से चले थे वहीं लौट आए। यहीं तो मिले थे कभी […]

मुहब्बत को कमाना जानते हैं/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

मुहब्बत को कमाना जानते हैं। कि हम सब कुछ लुटाना जानते हैं।।   ख़ुशी का हम घराना जानते हैं। ग़मे-दिल का ठिकाना जानते हैं।।   मुहब्बत भी हुई अब के उन्हीं से। वो जो दिल को खिलौना जानते हैं।।   दुखाते हम नहीं हैं दिल किसी का। कि लफ़्ज़ों को सजाना जानते हैं।।   अगर […]

अकेलेपन की आदत हो गई है/ग़ज़ल/दर्द गढ़वाली

अकेलेपन की आदत हो गई है। मुझे शायद मुहब्बत हो गई है।।   मुलाजि़म हो गया बेटा मेरा भी। मुझे अब कुछ सहूलत हो गई है।।   जिसे कल ख्वाब में देखा था मैंने। वो मेरे घर की जी़नत हो गई है।।   गरीबी को नहीं ये मुंह लगाती। बड़ी कमजर्फ दौलत हो गई है।। […]

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