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काव्य

ठाठ है फ़क़ीरी अपना/गीत/गोपालदास नीरज

गली-गली सपने बेचें, बाँटें सितारे करें ख़ाली हाथ सौदा, साँझ-सकारे ठाठ है फ़क़ीरी अपना जनम-जनम से।। कोई नहीं मंज़िल अपनी कोई ना ठिकाना प्यार-भरी आँखों में है अपना आशियाना धरम-करम कोई नहीं हमें बाँध पाये अपने गाँव में भी रहे बनके हम पराये बन्धनों से नहीं, हम तो बंधते क़सम से ठाठ है फ़क़ीरी अपना […]

भाव-नगर से अर्थ-नगर में/गीत/गोपालदास नीरज

चलते चलते पहुँच गए हम भाव-नगर से अर्थ-नगर में जाने कितने और मोड़ हैं जीवन के अनजान सफर में। नहीं ज़िन्दगी रही ज़िन्दगी शब्दों की दूकान हो गई, ख़ुद पर आए शर्म हमें मंज़िल इतनी आसान हो गई अपने ही हाथों से हमने आग लगा दी अपने घर में चलते-चलते पहुँच गए हम ॥ मोती […]

आँसू जब सम्मानित होंगे/गीत/गोपालदास नीरज

आँसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा। जहाँ प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा।। मान-पत्र मैं नहीं लिख सका राजभवन के सम्मानों का मैं तो आश़िक रहा जनम से सुन्दरता के दीवानों का लेकिन था मालूम नहीं ये केवल इस ग़लती के कारण सारी उम्र भटकने वाला मुझको शाप दिया जाएगा। आँसू […]

छिप-छिप अश्रु बहाने वालो/गीत/गोपालदास नीरज

छिप-छिप अश्रु बहाने वालो, मोती व्यर्थ बहाने वालो कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालो, डूबे बिना नहाने वालो कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं […]

तू उठा तो उठ गई सारी सभा/गीत/गोपालदास नीरज

तू उठा तो उठ गई सारी सभा सिर्फ मन्दिर थरथराता रह गया! स्वप्न की डोली उठा आँसू चले धूल फूलों की जवानी हो गई शाम की स्याही बनी दिन की खुशी देह की मीनार पानी हो गई तू गया क्या-हाय, बेमौसम यहाँ एक बादल डबडबाता रह गया ! तू उठा तो उठ गई सारी सभा […]

अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है/गीत/गोपालदास नीरज

अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है जो झुका है वह उठे अब सर उठाए, जो रूका है वह चले नभ चूम आए, जो लुटा है वह नए सपने सजाए, जुल्म-शोषण को खुली देकर चुनौती, प्यार अब तलवार को बहला रहा है। अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा […]

बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

बदन पे जिसके शराफ़त का पैरहन देखा वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा ख़रीदने को जिसे कम थी दौलते दुनिया किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा बड़ा न छोटा कोई, फ़र्क़ बस नज़र का है सभी […]

जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला, मेरे स्वागत को हर एक जेब से ख़ंजर निकला । तितलियों फूलों का लगता था जहाँ पर मेला, प्यार का गाँव वो बारूद का दफ़्तर निकला । डूब कर जिसमे उबर पाया न मैं जीवन भर, एक आँसू का वो कतरा तो समंदर निकला । […]

खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, खिडकी खुली है ग़ालिबन उनके मकान की । हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो, आ जायेगी ज़मीन पे छत आसमान की । बुझ जाये सरे आम ही जैसे कोई चिराग़, कुछ यूँ है शुरुआत मेरी दास्तान की । ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की […]

जितना कम सामान रहेगा/ग़ज़ल/गोपालदास नीरज

जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा जितनी भारी गठरी होगी उतना तू हैरान रहेगा उससे मिलना नामुमक़िन है जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा हाथ मिलें और दिल न मिलें ऐसे में नुक़सान रहेगा जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं मुश्क़िल में इन्सान रहेगा ‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा उसका गीत-विधान रहेगा