+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

काव्य

जिसे तुम कविता कहते हो/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

बिल्कुल ही एक मजदूर की तरह जब खुद को जोड़ा हूं झिंझोड़ा हूं दिन रात आंखों को फोड़ा हूं निचोड़ा हूं तब जाकर कहीं कुछ पंक्तियां लिख पाया हूं जिसे तुम कविता कहते हो दरअसल यह कविता नही मेरी आंखों का छिना हुआ सुकून है परिश्रम है; पसीना है; खून है

भूख/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

भूख पीड़ा है; तड़प है; चाह है भूख क्रिया है; संवेग है; आह है भूख लालच है; लोभ है; आग है भूख गिद्ध है; भेड़िया है; नाग है भूख रोटी है; कपड़ा है; मकान है भूख श्रध्दा है; व्रत है; अनुष्ठान है भूख इज्जत है; शोहरत है; शान है भूख शर्त है; सवाल है; विधान […]

बिटिया टीईटी पास है/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

रामू! रामू हाँ बाबू मेहमान आयें हैं मेहमान अच्छऽ बाबू! कहते हुए साथ में कुछ कुर्सियाँ और बिछौना लिए रामू आता है करते हुए मेहमानों का अभिवादन लगाता है कुर्सियाँ और बिछौना बोलता है मेहमानों को बैठने के लिए मेहमान बैठते हैं रामू अंदर जाता है लाता है पानी से भरी गिलासें प्लेट में खोये […]

मैं दाल नही गलने दूंगा/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

बहुत हो गया शोषण जुल्म अब और नही छलने दूंगा आदमखोर उचक्कों की मैं दाल नही गलने दूंगा। मनमाना मनमौज किसी का रूआब नहीं चलने दूंगा किसी गरीब को ठगने का कोई ख्वाब नहीं पलने दूंगा सौगंध मुझे हे भारत मां अन्याय नहीं होनेदूंगा आदमखोर उचक्कों की मैं दाल नही गलने दूंगा। बदल रहे जो […]

मानव नहीं दरिंदे हैं हम/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

मानव नहीं दरिंदे हैं हम, मनबढ़ मस्त परिंदे हैं हम, प्यास हमारी जिस्मानी है, हैवानी पर जिंदे हैं हम। मानव नहीं दरिंदे हैं हम। मनबढ़ मस्त परिंदे हैं हम।। कहने को बस अपनापन है, कत्लेआम रे वहशीपन है, रोज-रोज का पेशा अपना, कहने को शर्मिन्दे हैं हम। मानव नहीं दरिंदे हैं हम। मनबढ़ मस्त परिंदे […]

गुरूर ख़ाक हो जाएगा/नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’

गुरूर ख़ाक हो जाएगा मग़रूर ख़ाक हो जाएगा अपने पाप-कर्मों से ही असुर ख़ाक हो जाएगा खाया एक गच्चा जो तो सुरूर ख़ाक हो जाएगा फुला ग़र जो गुब्बारे-सा ससुर ख़ाक हो जाएगा ख़ुद-ब-ख़ुद आताताई हुज़ूर ख़ाक हो जाएगा अडिग रहना सच्चाई पे क़सूर ख़ाक हो जाएगा ख़ालिस प्रेम-मरहम से नासूर ख़ाक हो जाएगा सोनकर […]

×