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काव्य

युद्ध और शांति/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

हम जिन्होंने युद्ध नहीं किया तुम्हारे शरीफ़ बेटे नहीं हैं ज़िंदगी! वैसे हम हमेशा शरीफ़ बनना चाहते रहे हमने दो रोटियों और ज़रा-सी रज़ाई के एवज़ में युद्ध के आकार को सिकोड़ना चाहा हम बिना शान के फंदों में शांति-सा कुछ बुनते रहे हम बर्छी की तरह हड्डियों में चुभे सालों को उम्र कहते रहे […]

उसके नाम/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मेरी महबूब, तुम्हें भी गिला होगा मुहब्बत पर मेरी ख़ातिर तुम्हारे बेक़ाबू चावों का क्या हुआ तुमने इच्छाओं को सुई से जो उकेरी थी रूमालों पर उन धूपों को क्या बना, उन छायाओं का क्या हुआ   कवि होकर कैसे बिन पढ़े ही छोड़ जाता हूँ तेरे नयनों में लिखी हुई इक़रार की कविता तुम्हारे […]

हाथ/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं अपने ज़िस्म को हाथों से सँभाल सकता हूँ मेरे हाथ जब महबूब का हाथ माँगते हैं पकड़ने को तो मैं चाँद भी हाथ में पकड़ना चाहता हूँ   मेरे हाथों को लेकिन सींखचों का स्पर्श बिना शिकवा मुबारक हे साथ ही कोठरी के इस अँधेरे में मेरे हाथ, हाथ नहीं होते सिर्फ़ थप्पड़ होते […]

हमारे समयों में/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

यह सब कुछ हमारे ही समयों में होना था कि समय ने रुक जाना था थके हुए युद्ध की तरह और कच्ची दीवारों पर लटकते कैलेंडरों ने प्रधानमंत्री की फ़ोटो बनकर रह जाना था   धूप से तिड़की हुई दीवारों के परखचों और धुएँ को तरसते चूल्हों ने हमारे ही समयों का गीत बनना था […]

मुझे चाहिए कुछ बोल/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मुझे चाहिए कुछ बोल जिनका एक गीत बन सके……   छीन लो मुझसे ये भीड़ की टें टें जला दो मुझे मेरी कविता की धूनी पर मेरी खोपड़ी पर बेशक खनकाएं शासन का काला डंडा लेकिन मुझे दे दो कुछ बोल जिनका गीत बन सके……   मुझे नहीं चाहिए अमीन सयानी के डायलॉग संभाले आनंद […]

लोहा/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

आप लोहे की कार का आनन्द लेते हो मेरे पास लोहे की बन्दूक़ है   मैंने लोहा खाया है आप लोहे की बात करते हो लोहा जब पिघलता है तो भाप नहीं निकलती जब कुठाली उठाने वालों के दिल से भाप निकलती है तो लोहा पिघल जाता है पिघले हुए लोहे को किसी भी आकार […]

बफ़ा/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

बरसों तड़पकर तुम्हारे लिए मैं भूल गया हूँ कब से, अपनी आवाज़ की पहचान भाषा जो मैंने सीखी थी, मनुष्य जैसा लगने के लिए मैं उसके सारे अक्षर जोड़कर भी मुश्किल से तुम्हारा नाम ही बन सका मेरे लिए वर्ण अपनी ध्वनि खो बैठे हैं बहुत देर से मैं अब लिखता नहीं- तुम्हारे धूपिया अंगों […]

तुम्हारे बग़ैर मैं होता ही नहीं /कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

तुम्हारे बग़ैर मैं बहुत खचाखच रहता हूँ यह दुनिया सारी धक्कम-पेल सहित बेघर पाश की दहलीजें लाँघ कर आती-जाती है तुम्हारे बग़ैर मैं पूरे का पूरा तूफ़ान होता हूँ ज्वार-भाटा और भूकम्प होता हूँ तुम्हारे बग़ैर मुझे रोज़ मिलने आते हैं आईंस्टाइन और लेनिन मेरे साथ बहुत बातें करते हैं जिनमें तुम्हारा बिलकुल ही ज़िक्र […]

तुम्हारे रुक-रुक कर जाते पावों की सौगन्ध बापू/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

तुम्हारे रुक-रुक कर जाते पाँवों की सौगन्ध बापू तुम्हें खाने को आते रातों के जाड़ों का हिसाब मैं लेकर दूँगा तुम मेरी फ़ीस की चिंता न करना मैं अब कौटिल्य से शास्त्र लिखने के लिए विद्यालय नहीं जाया करूँगा मैं अब मार्शल और स्मिथ से बहिन बिंदरों की शादी की चिंता की तरह बढ़ती क़ीमतों […]

द्रोणाचार्य के नाम/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मेरे गुरुदेव! उसी वक़्त यदि आप एक भील बच्चा समझ मेरा अंगूठा काट देते तो कहानी दूसरी थी………….   लेकिन एन।सी।सी। में बंदूक उठाने का नुक्ता तो आपने खुद बताया था कि अपने देश पर जब कोई मुसीबत आन पड़े दुश्मन को बना कर टार्गेट कैसे घोड़ा दबा देना है ………   अब जब देश […]

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