चलते चलते आ गया ये कैसा रस्ता सामने
दूर तक फैला हुआ है घुप् अंधेरा सामने
सब सियासत ही के गंदे खेल में मसरूफ़ हैं
डर रहा हूंं देख कर अंजामे-फ़र्दा सामने
सहमे सहमे से हैं बच्चे हंसती गुड़िया देखकर
कल धमाके में मरा था एक बच्चा सामने
आंधियों का दौर है ये हर शजर है बे अमां
बच गये तो देखना मंज़र सुहाना सामने
आइने को तोड़ने से क्या हक़ीक़त मिट गयी
जो छुपा था आ गया है वो भी चेहरा सामने
कुछ तमन्ना कुछ उमीदें कुछ ये शेरो-शाइरी
ज़िंदगी जीने को है अच्छा बहाना सामने
लेखक
-
प्रेमकिरण प्रकाशन- 'आग चखकर लीजिए', 'पिनकुशन', 'तिलिस्म टूटेगा' (हिन्दी ग़ज़ल संग्रह), ज़ह्राब (उर्दू ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित। ग़ज़ल एवं कविता के विभिन्न साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित। इनके अतिरिक्त हिन्दी एवं उर्दू की पत्रिकाओं में ग़ज़ल कविता, कहानी, फीचर, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षा, कला समीक्षा, साहित्यिक आलेख प्रकाशित। संपादन: समय सुरभि ग़ज़ल विशेषांक । अनुवाद प्रसारण: नेपाली एवं बंगला भाषा में ग़ज़लों का अनुवाद। सम्मान: डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर' सम्मान से सम्मानित (2005)। दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान से सम्मानित (2006)। शाद अजीमाबादी सम्मान (2007)। बिहार उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित (2009) प्रसारण: दूरदर्शन, आकाशवाणी, पटना के हिन्दी एवं उर्दू विभाग से कविता, कहानी एवं ग़ज़लें प्रसारित तथा अनेक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शिरकत । संपर्क: कमला कुंज, गुलज़ारबाग, पटना-800007 मो. : +91-9334317153 ई-मेल : premkiran2010@gmail.com
View all posts