कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या
हम हुए भी हैं कभी आबाद क्या
ख़्वाब की नगरी रियासत है मेरी
और दे जाते मेरे अजदाद क्या
फूल से चेहरे हुए बे आब क्यों
मौसमों की फिर पड़ी उफ़्ताद क्या
कोई मैना है न बुलबुल शाख़ पर
बाग़बां भी हो गये सैय्याद क्या
हो गयी तहज़ीब अपनी बे लिबास
देखना है और इसके बाद क्या
अपनी मर्ज़ी के सभी मुख़्तार हैं
वाकई हम हो गये आज़ाद क्या
ज़िन्दगी हर रंग में देखा तुझे
क्या भुलायें और रक्खें याद क्या
सर उठा कर हम जाये है ए किरन
दुश्मनों के सामने फ़रियाद क्या
लेखक
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प्रेमकिरण प्रकाशन- 'आग चखकर लीजिए', 'पिनकुशन', 'तिलिस्म टूटेगा' (हिन्दी ग़ज़ल संग्रह), ज़ह्राब (उर्दू ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित। ग़ज़ल एवं कविता के विभिन्न साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित। इनके अतिरिक्त हिन्दी एवं उर्दू की पत्रिकाओं में ग़ज़ल कविता, कहानी, फीचर, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षा, कला समीक्षा, साहित्यिक आलेख प्रकाशित। संपादन: समय सुरभि ग़ज़ल विशेषांक । अनुवाद प्रसारण: नेपाली एवं बंगला भाषा में ग़ज़लों का अनुवाद। सम्मान: डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर' सम्मान से सम्मानित (2005)। दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान से सम्मानित (2006)। शाद अजीमाबादी सम्मान (2007)। बिहार उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित (2009) प्रसारण: दूरदर्शन, आकाशवाणी, पटना के हिन्दी एवं उर्दू विभाग से कविता, कहानी एवं ग़ज़लें प्रसारित तथा अनेक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शिरकत । संपर्क: कमला कुंज, गुलज़ारबाग, पटना-800007 मो. : +91-9334317153 ई-मेल : premkiran2010@gmail.com
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