बच्चों को देखती है, दफ़्तर को देखती है/ग़ज़ल/गरिमा सक्सेना
बच्चों को देखती है, दफ़्तर को देखती है दफ़्तर से लौटकर वो, फिर घर को देखती है वह देखती है ख़तरे, धरती के आसमां के जब घर को देखती है, बाहर को देखती है कितनी ही सिलवटों से वो जूझती है भीतर जब सिलवटों को ओढ़े बिस्तर को देखती है जिस देवता पे उसने ख़ुद […]