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राम जाने ये कैसी बस्ती है/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

राम जाने ये कैसी बस्ती है,
छत गिरे तो दिवार हँसती है।

हम उन्हीं मौसमों के पाले हैं,
धूप जब छाँव को तरसती है।

ज़िन्दगी की तमाम जद्दोजहद,
धूप में पानियों की मस्ती है।

इन चमकते हुए सवेरों से,
रात ही रात क्यूँ बरसती है।

जाने क्या आप ढूँढ़ते हैं यहाँ,
दिल अजायब घरों की बस्ती है।

लेखक

  • ए.एफ़. ’नज़र’ जन्म -30 जून,1979 गाँव व डाक- पिपलाई, तहसील- बामनवास ज़िला- गंगापुर सिटी (राज), पिन- 322214 मोबाइल - 9649718589 Email- af.nazar@rediffmail.com

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