बच्चों को देखती है, दफ़्तर को देखती है
दफ़्तर से लौटकर वो, फिर घर को देखती है
वह देखती है ख़तरे, धरती के आसमां के
जब घर को देखती है, बाहर को देखती है
कितनी ही सिलवटों से वो जूझती है भीतर
जब सिलवटों को ओढ़े बिस्तर को देखती है
जिस देवता पे उसने ख़ुद को किया समर्पित
उस देवता में अब वो, पत्थर को देखती है
जिस तितली को रुपहले पंखों पे कल गुमां था
अब ज़ख्मों के निशां ओ, नश्तर को देखती है
लेखक
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गरिमा सक्सेना पिता : महेश चंद्र सक्सेना माता : रीता सक्सेना पति : अंजुल खरे जन्मतिथि : 29 जनवरी 1990 शिक्षा : बी. टेक (इलेक्ट्राॅनिक्स एंड इन्सट्रयूमेंटेशन) प्रकाशित कृतियाँ- 1-दिखते नहीं निशान(दोहा संग्रह) 2-है छिपा सूरज कहाँ पर (नवगीत संग्रह) 3- हरसिंगार झरे गीतों से (गीत संग्रह) 4- एक नयी शुरुआत (दोहा संग्रह) 5- कोशिशों के पुल (नवगीत संग्रह) 6- चेहरे का जयपुर हो जाना (प्रेमगीत संग्रह) संपादित कृतियाँ- दोहे के सौ रंग (सौ रचनाकारों का सम्मिलित दोहा संग्रह) भाग१, भाग२, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, संवदिया पत्रिका के दोहा विशेषांक का अतिथि संपादन पत्र - पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन सम्मान- उ. प्र. हिंदी संस्थान द्वारा बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' पुरस्कार, हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहाबाद द्वारा युवा लेखन कविता सम्मान, नवगीत साहित्य सम्मान (नवगीतकार रामानुज त्रिपाठी स्मृति) सहित दर्जनों संस्थाओं से सम्मानित। लेखन विधाएँ : गीत, ग़ज़ल, दोहा, कविता, लघुकथा आदि। सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन, कवर डिजायनिंग, चित्रकारी स्थायी संपर्क : एफ-652, राजा जी पुरम, लखनऊ, उत्तर प्रदेश-226017 वर्तमान संपर्क : मकान संख्या- 212 ए-ब्लाॅक, सेंचुरी सरस अपार्टमेंट, अनंतपुरा रोड, यलहंका, बैंगलोर, कर्नाटक-560064 मो : 7694928448 ईमेल-garimasaxena1990@gmail.com
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