काश यूँ हो कि मेरा प्यार ग़ज़ल हो जाए,
मैं पढ़ूँ और वो जफ़ाकार ग़ज़ल हो जाए।
मैं जो दीवाना हुआ हूँ तो अजब क्या है सनम,
नाम लिख दूँ तेरा दीवार ग़ज़ल हो जाए।
ये सिफ़त तेरी मुहब्बत ने अता की है मुझे,
लब पे मैं रख लूँ तो अंगार ग़ज़ल हो जाए।
मुझपे ये क़त्ल का इल्ज़ाम भला हो तेरा,
हाथ में ले लूँ तो तलवार ग़ज़ल हो जाए।
हम जो मय पीते हैं गर आप ज़रा सी चखलें,
बाख़ुदा आपकी रफ़्तार ग़ज़ल हो जाए।
आपसे जीतना मक़सद भी नहीं है मेरा,
ऐसे हारूँ कि मेरी हार ग़ज़ल हो जाए।
काश यूँ हो कि मेरा प्यार ग़ज़ल हो जाए/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’