+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

चूल्हा-चौका-फ़ाइल-बच्चे दिनभर उलझी रहती है/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

चूल्हा-चौका-फ़ाइल-बच्चे दिनभर उलझी रहती है,
वो घर में और दफ़्तर में अब आधी-आधी रहती है।

मिल कर बैठें दुख-सुख बाँटें इतना हमको वक़्त कहाँ,
दिन उगने से रात गये तक आपा-धापी रहती है।

जिस दिन से तक़रार हुई उन सियह गुलाबी होंठों में,
दो कजरारी आँखों के संग छत भी जागी रहती है।

जब से पछुआ पवनें घर में आना-जाना आम हुईं,
तुलसी मेरे आँगन की कुछ सहमी-सहमी रहती है।

क्या अब भी घुलती हैं रातें चाँद परी की बातों में,
क्या तेरे आँगन में अब भी बूढ़ी दादी रहती है।

लेखक

  • ए.एफ़. ’नज़र’ जन्म -30 जून,1979 गाँव व डाक- पिपलाई, तहसील- बामनवास ज़िला- गंगापुर सिटी (राज), पिन- 322214 मोबाइल - 9649718589 Email- af.nazar@rediffmail.com

    View all posts
चूल्हा-चौका-फ़ाइल-बच्चे दिनभर उलझी रहती है/ग़ज़ल/ए.एफ़. ’नज़र’

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×