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 मुफ़लिसों की कहां बाजार से गाड़ी निकली/गज़ल/डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी

 मुफ़लिसों की कहां बाजार से गाड़ी निकली
 जब सड़क पर कभी रफ्तार से गाड़ी निकली

 झोपड़ी आ गई रस्ते में हमारी जब से
 फिर उसी घर की ही दीवार से गाड़ी निकली

 आज कुछ मजमे ने कुछ बात न मानी उनकी
 तेज रफ्तार में इंकार से गाड़ी निकली

 वो अपाहिज था भटकता रहा रिक्शे के लिए
 थे बड़े लोग तो सरकार से गाड़ी निकली

 लॉटरी सब के मुकद्दर में कहां मिलती है
 लोग कुछ कहते हैं अखबार से गाड़ी निकली

 दूर तक दिखता गया शीशे में झिलमिल कोई
 हां मगर शोर से झंकार से गाड़ी निकली

लेखक

  • डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी जन्म -10 जनवरी 1978, बेगूसराय, बिहार हिन्दी,शिक्षा शास्त्र,और अंग्रेजी में स्नातकोत्तर,बीएड और पत्रकारिता,पीएच-डी हिन्दी, यू जी सी नेट हिन्दी. -खुले दरीचे की खुशबू, खुशबू छू कर आई है (हिन्दी ग़ज़ल )परवीन शाकिर की शायरी, गजल लेखन परंपरा और हिंदी ग़ज़ल का विकास, डॉ.भावना का गजल साहित्य चिंतन और दृष्टि(आलोचना)चांद हमारी मुट्ठी में है, आख़िर चांद चमकता क्यों है, मैं आपी से नहीं बोलती (बाल कविता )आदि पुस्तकें प्रकाशित, हिंदी, उर्दू और मैथिली की तमाम राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में नियमित लेखन आकाशवाणी और दूरदर्शन से लगातार प्रसारण विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा सौ से अधिक पुरस्कार तथा सम्मान. वृत्ति -अध्यापन पत्राचार -ग्राम /पोस्ट -माफ़ी, वाया -अस्थावां, ज़िला-नालंदा, बिहार 803107, मोबाइल 9934847941,620525425 zeaurrahmanjafri786@gmail.com

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