वो अपना हाथ दुआओं में जब उठाती है/गज़ल/डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी
यह दौड़ जाती है लड़ती है खूं बहाती है ये वो ग़ज़ल नहीं जुल्फों में दिन बिताती है अमीरी देख के मीनू डिमांड करती है गरीबी बात भी बासी मिले तो खाती है रईस लोग तो एसी में क़ैद हो आये ये धूप जिसको जलाना हो बस जलाती है ये एक सोच जो मुझको कभी […]