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बन बैठा अख़बार आदमी/गज़ल/सत्यम भारती

क़दम-क़दम दो चार आदमी
दिखते हैं लाचार आदमी

जो आता है छल कर जाता
किसे कहूँ मक्कार आदमी

नफ़रत-हिंसा में घिरकर अब
बन बैठा अख़बार आदमी

बिक जाते हैं दो कौड़ी में
बिकने को तैयार आदमी

हक़ से वंचित दिखता है
जिसका था हक़दार आदमी

लेखक

  • सत्यम भारती

    सत्यम भारती जन्म-20 मई 1995 जन्मस्थान- बेगूसराय, बिहार शिक्षा :- स्नातक, बीएचयू परास्नातक, जेएनयू नेट और जेआरएफ(हिंदी) पीएचडी(अध्ययनरत), हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा सम्प्रति- प्रवक्ता (हिंदी) राजकीय मॉडल इंटर कॉलेज नैथला हसनपुर, बुलंदशहर प्रकाशित कृतियाँ- बिखर रहे प्रतिमान (दोहा-संग्रह) सुनो सदानीरा (ग़ज़ल-संग्रह)

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बन बैठा अख़बार आदमी/गज़ल/सत्यम भारती

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