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छाने    हैं    तहख़ाने     तक/विज्ञान व्रत

उसने  ख़ुद  को   पाने   तक
छाने    हैं    तहख़ाने     तक
बस   किरदार  बचाने   तक
वो  जीया   मर   जाने   तक
सिर्फ़    मुझे    ही    सोचेगा
वो  मुझ – सा  हो जाने  तक
मुझको   ढूँढ़   न   पाया  वो
मुझमें  गुम   हो  जाने   तक
ख़ुद   ही    बेपहचान   हुआ
वो    पहचान    बनाने   तक
जाने    कितनी   बार    मरा
वो  आख़िर  मर  जाने  तक

लेखक

  • विज्ञान व्रत

    विज्ञान व्रत जन्म-तिथि : 17 अगस्त 1943 जन्म-स्थान : तेड़ा (मेरठ) उ प्र शिक्षा : M A ललित कला , B Ed , डिप्लोमा -- चित्रकला (राजस्थान) सम्प्रति : लेखन तथा चित्रकला प्रकाशित कृतियाँ : ग़ज़ल संग्रह : बाहर धूप खड़ी है , चुप की आवाज़ , जैसे कोई लौटेगा , तब तक हूँ , मैं जहाँ हूँ , शर्मिन्दा पैमाने थे , किसका चेहरा पहना है , भूल बैठा हूँ जिसे , मेरा चेहरा वापस दो , याद आना चाहता हूँ , लेकिन ग़ायब रौशनदान , मेरे वापस आने तक , रौशनी है आपसे और विज्ञान व्रत : चुने हुए शे'र दोहा संग्रह : खिड़की भर आकाश

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