+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

रत्नसेन-जन्म-खंड-6 पद्मावत/जायसी

चित्रसेन चितउर गढ़ राजा । कै गढ़ कोट चित्र सम साजा ॥
तेहि कुल रतनसेन उजियारा । धनि जननी जनमा अस बारा ॥
पंडित गुनि सामुद्रिक देखा । देखि रूप औ लखन बिसेखा ॥
रतनसेन यह कुल-निरमरा । रतन-जोति मन माथे परा ॥
पदुम पदारथ लिखी सो जोरी । चाँद सुरुज जस होइ अँजोरी ॥
जस मालति कहँ भौंर वियोघी । तस ओहि लागि होइ यह जोगी ।
सिंघलदीप जाइ यह पावै । सिद्ध होइ चितउर लेइ आवै ॥

मोग भोज जस माना, विक्रम साका कीन्ह ।
परखि सो रतन पारखी सबै लखन लिखि दीन्ह ॥1॥

(पदुम=पद्मावती की ओर लक्ष्य है, भोज=राजा भोज,
लखन=लक्षण)

लेखक

  • मलिक मुहम्मद जायसी हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि हैं । वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। उनका जन्म सन १५०० के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे। उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग, उनके उपनाम की भांति, किया जाता है। उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है। सैयद अशरफ़ उनके गुरु थे और अमेठी नरेश उनके संरक्षक थे। उनकी २१ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा आदि प्रमुख हैं। पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना-शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है।

    View all posts
रत्नसेन-जन्म-खंड-6 पद्मावत/जायसी

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×