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स्तुति-खंड-1 पद्मावत/जायसी

सुमिरौं आदि एक करतारू । जेहि जिउ दीन्ह कीन्ह संसारू ॥ कीन्हेसि प्रथम जोति परकासू । कीन्हेसि तेहि पिरीत कैलासू ॥ कीन्हेसि अगिनि, पवन, जल खेहा । कीन्हेसि बहुतै रंग उरेहा ॥ कीन्हेसि धरती, सरग, पतारू । कीन्हेसि बरन बरन औतारू ॥ कीन्हेसि दिन, दिनअर, ससि, राती । कीन्हेसि नखत, तराइन-पाँती ॥ कीन्हेसि धूप, सीउ […]

सिंहलद्वीप वर्णन-खंड-2 पद्मावत/जायसी

सिंघलदीप कथा अब गावौं । औ सो पदमिनी बरनि सुनावौं ॥ निरमल दरपन भाँति बिसेखा । जौ जेहि रूप सो तैसई देखा ॥ धनि सो दीप जहँ दीपक-बारी । औ पदमिनि जो दई सँवारी ॥ सात दीप बरनै सब लोगू । एकौ दीप न ओहि सरि जोगू ॥ दियादीप नहिं तस उँजियारा । सरनदीप सर […]

जन्म-खंड-3 पद्मावत/जायसी

चंपावति जो रूप सँवारी । पदमावति चाहै औतारी ॥ भै चाहै असि कथा सलोनी । मेटि न जाइ लिखी जस होनी ॥ सिंघलदीप भए तब नाऊँ । जो अस दिया बरा तेहि ठाऊँ ॥ प्रथम सो जोति गगन निरमई । पुनि सो पिता माथे मनि भई ॥ पुनि वह जोति मातु-घट आई । तेहि ओदर […]

मानसरोदक-खंड-4 पद्मावत/जायसी

एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥ पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥ कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥ कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥ कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥ […]

सुआ-खंड-5 पद्मावत/जायसी

पदमावति तहँ खेल दुलारी । सुआ मँदिर महँ देखि मजारी ॥ कहेसि चलौं जौ लहि तन पाँखा । जिउ लै उड़ा ताकि बन ढाँखा ॥ जाइ परा बन खँड जिउ लीन्हें । मिले पँखि, बहु आदर कीन्हें ॥ आनि धरेन्हि आगे फरि साखा । भुगुति भेंट जौ लहि बिधि राखा ॥ पाइ भुगुति सुख तेहि […]

रत्नसेन-जन्म-खंड-6 पद्मावत/जायसी

चित्रसेन चितउर गढ़ राजा । कै गढ़ कोट चित्र सम साजा ॥ तेहि कुल रतनसेन उजियारा । धनि जननी जनमा अस बारा ॥ पंडित गुनि सामुद्रिक देखा । देखि रूप औ लखन बिसेखा ॥ रतनसेन यह कुल-निरमरा । रतन-जोति मन माथे परा ॥ पदुम पदारथ लिखी सो जोरी । चाँद सुरुज जस होइ अँजोरी ॥ […]

बनिजारा-खंड-7 पद्मावत/जायसी

बनिजारा-खंड चितउरगढ़ कर एक बनिजारा । सिंघलदीप चला बैपारा ॥ बाम्हन हुत निपट भिखारी । सो पुनि चलत बैपारी ॥ ऋन काहू सन लीन्हेसि काढ़ी । मकु तहँ गए होइ किछु बाढ़ी ॥ मारग कठिन बहुत दुख भएऊ । नाँघि समुद्र दीप ओहि गएऊ ॥ देखि हाट किछु सूझ न ओरा । सबै बहुत, किछु […]

नागमती-सुवा-संवाद-खंड-8 पद्मावत/जायसी

दिन दस पाँच तहाँ जो भए । राजा कतहुँ अहेरै गए ॥ नागमती रूपवंती रानी । सब रनिवास पाट-परधानी ॥ कै सिंगार कर दरपन लीन्हा । दरसन देखि गरब जिउ कीन्हा ॥ बोलहु सुआ पियारे-नाहाँ । मोरे रूप कोइ जग माहाँ?॥ हँसत सुआ पहँ आइ सो नारी । दीन्ह कसौटी ओपनिवारी ॥ सुआ बानि कसि […]

राजा-सुआ-संवाद-खंड-9 पद्मावत/जायसी

राजै कहा सत्य कहु सूआ । बिनु सत जन सेंवर कर भूआ ॥ होइ मुख रात सत्य के बाता । जहाँ सत्य तहँ धरम सँघाता ॥ बाँधी सिहिटि अहै सत केरी । लछिमी अहै सत्य कै चेरी ॥ सत्य जहाँ साहस सिधि पावा । औ सतबादी पुरुष कहावा ॥ सत कहँ सती सँवारे सरा । […]

नखशिख खंड-10 पद्मावत/जायसी

का सिंगार ओहि बरनौं, राजा । ओहिक सिंगार ओहि पै छाजा ॥ प्रथम सीस कस्तूरी केसा । बलि बासुकि, का और नरेसा ॥ भौंर केस, वह मालति रानी । बिसहर लुरे लेहिं अरघानी ॥ बेनी छोरि झार जौं बारा । सरग पतार होइ अँधियारा ॥ कोंपर कुटिल केस नग कारे । लहरन्हि भरे भुअंग बैसारे […]

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