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अश्क हमारे हुए समुन्दर/बृंदावन राय सरल

अश्क हमारे हुए समुन्दर।
इतने ग़म के झरने अंदर।
किससे कहें दास्तां  अपनी
बहरे गूंगे अपने दिलवर।
आजादी है कहने भर को,
पहरे बैठे हैं अब हम पर।
महँगाई ने हमें निचोड़ा,
जिससे आंखें अपनी हैं तर।
पिंजरा कहना  झूठ नहीं है,
 जिसको समझ रहे हैं हम घर।

लेखक

  • बृंदावन राय सरल

    बृंदावन राय सरल माता- स्व. श्रीमती फूलबाई राय पिता- स्व. बालचन्द राय जन्मतिथि- 03 जून 1951 जन्म स्थान- खुरई, सागर (मध्य प्रदेश) शिक्षा- साहित्य रत्न, आयुर्वेद रत्न, सिविल इंजीनियर । भाषा - हिंदी, बुंदेली, उर्दू । प्रकाशन- हिंदी व बुंदेली भाषा में 14 किताबें प्रकाशित । साझा संकलन- लगभग 225 संकलनों में रचनाएं सम्मलित के अलावा देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन ।

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