+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

बाहर पहरा ज्ञान का ,भीतर हरि का वास/दिलजीत सिंह रील

पांव चूम पगडंडियां ,सब को रहीं नवाज़ ।
जहां कहीं जाती नहीं, सड़कें दूर दराज।।

सरल हृदय पगडंडियां, करें पथिक से प्रीत ।
मंजिल तक पहुंचाएंगी ,बढे चलो दिलजीत।।

पापी धर्मी कौन है, भेद न मन में लाए ।
पगडंडी सद् भाव से, सब का बोझ उठाए।।

रमी चरण रज साधु की, पगडंडी के भाल ।
पग-पग डंडी मारती , जिनकी टेढ़ी चाल।।

बाहर पहरा ज्ञान का ,भीतर हरि का वास।
भक्तों की पगडंडियां, पंहुचीं हरि के पास।।

प्रेम पगी पगडंडियां, वृंदावन के द्वार ।
राधे राधे बोलतीं, हरि के चरण पखार।।

इन पगडंडी पर चले, बृह्मा विष्णु महेश।
हरि चरणों की धूल है, पगडंडी परिवेश।।

पगडंडी साकेत की, चली राम के साथ ।
चित्र कूट को चूम के, मिले कामता नाथ।।

पगडंडी के फेर में, बीती उम्र तमाम ।
खत्म तमाशा कर गया,मरघट तीरथ धाम।।

दिलजीत सिंह रील

लेखक

बाहर पहरा ज्ञान का ,भीतर हरि का वास/दिलजीत सिंह रील

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×