पांव चूम पगडंडियां ,सब को रहीं नवाज़ ।
जहां कहीं जाती नहीं, सड़कें दूर दराज।।
सरल हृदय पगडंडियां, करें पथिक से प्रीत ।
मंजिल तक पहुंचाएंगी ,बढे चलो दिलजीत।।
पापी धर्मी कौन है, भेद न मन में लाए ।
पगडंडी सद् भाव से, सब का बोझ उठाए।।
रमी चरण रज साधु की, पगडंडी के भाल ।
पग-पग डंडी मारती , जिनकी टेढ़ी चाल।।
बाहर पहरा ज्ञान का ,भीतर हरि का वास।
भक्तों की पगडंडियां, पंहुचीं हरि के पास।।
प्रेम पगी पगडंडियां, वृंदावन के द्वार ।
राधे राधे बोलतीं, हरि के चरण पखार।।
इन पगडंडी पर चले, बृह्मा विष्णु महेश।
हरि चरणों की धूल है, पगडंडी परिवेश।।
पगडंडी साकेत की, चली राम के साथ ।
चित्र कूट को चूम के, मिले कामता नाथ।।
पगडंडी के फेर में, बीती उम्र तमाम ।
खत्म तमाशा कर गया,मरघट तीरथ धाम।।
दिलजीत सिंह रील
बाहर पहरा ज्ञान का ,भीतर हरि का वास/दिलजीत सिंह रील