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बाहर पहरा ज्ञान का ,भीतर हरि का वास/दिलजीत सिंह रील

पांव चूम पगडंडियां ,सब को रहीं नवाज़ । जहां कहीं जाती नहीं, सड़कें दूर दराज।। सरल हृदय पगडंडियां, करें पथिक से प्रीत । मंजिल तक पहुंचाएंगी ,बढे चलो दिलजीत।। पापी धर्मी कौन है, भेद न मन में लाए । पगडंडी सद् भाव से, सब का बोझ उठाए।। रमी चरण रज साधु की, पगडंडी के भाल […]

वो आने का वादा कर के ना आई तमाम रात/दिलजीत सिंह रील

वो आने का वादा कर के ना आई तमाम रात । हर आहट पे दर पे आंखें बिछाई तमाम रात।। ये आसमां के चांद तारे हैं साथ मेरे फिर भी । कटती नहीं है काटे ये तन्हाई तमाम रात ।। कुछ लोगों ने अब तो उस में स्टीमर चला दिए हैं। जो रो रो के […]

जगत रेल में चल रहे, भांति भांति के लोग/दिलजीत सिंह रील

खींचे इंजिन राम का, चले जगत की रेल। लाख चुरासी सीट की,कस कर रखे नकेल।। जगत रेल में चल रहे, भांति भांति के लोग। जैसा भाड़ा कोच का, वैसी सुविधा भोग।। चलता इंजिन ऐकला, आपस में कर मेल । डिब्बा डिब्बा जोड़ कर, सरपट दौड़े रेल ।। रेल पटरियों पर चले, जीवन भी इक रेल। […]

बस कुछ दिन और बरस जाए/दिलजीत सिंह रील

यह माना बहुत गिरा है पानी स्थिति भयावह बन जाएगी । बस कुछ दिन और बरस जाए तो अपनी कोठी तन जाएगी ।। दमित नदी की धारा को अब तक घाटों ने बांध रखा था । उफनी बाढ़ यदि इस बारिश में घाट नदी में ठन जाएगी ।। इतना पानी बरसा फिर भी नेता हुए […]

गीत व्यंग्य लय गज़ल गयी/दिलजीत सिंह रील

कितने सारे यार गये । हमको जिन्दा मार गये ।। यार गये जां वार गये । सुख के सब आधार गये।। बसे हुए थे आंखों में । सपनों के संसार गये ।। डोरी थामें रिश्तों की । सारे रिश्ते हार गये ।। प्राणों के कोषालय से । जीवन के उपहार गये ।। वे सब महा […]

गाड़ी हांकों भैयाजी हमने इसमें/दिलजीत सिंह रील

तन का पर्वत मन का सागर रक्खा है । गिरवी रक्षित हाथों में घर रक्खा है ।। कच्चे मटके फूट रहे हैं विश्वासों के । सोणी का विश्वास जहां पर रक्खा है ।। अच्छे दिन का सपना फैंका था, हमने । वो ही सपना आंखों में भर रक्खा है ।। हम जुटे हुए हैं अपना […]

जब अंधेरे हम कर सके ना प्यार से रौशन/दिलजीत सिंह रील

हम किये थे जिनके हवाले बाग को साहिब । दीमकें चाट गईं उन्हीं दिमाग को साहिब।। कदम हमने,अब हैं बढ़ाए,चांद की जानिब । मुफलिसी ये,कब तक सुनेगी राग को साहिब।‌। जब अंधेरे हम कर सके ना प्यार से रौशन। क्या करेंगे, ऐसी सुलगती आग को साहिब।। गिद्ध की ही तरहा, गड़ी है आंख दुश्मन की। […]

नदी है वोट की गन्दी हमें उस पार जाना है/दिलजीत सिंह रील

वही बादल चले हैं क्यों गिराने बिजलियां लेकर । हताशा में खड़े हम राहतों की तख्तियां लेकर ।। नदी है वोट की गन्दी हमें उस पार जाना है । अभी ठहरो न जाओ छेद वाली कश्तियां लेकर।। यहां आई गरीबी, आफतों की आंधियां बनकर । वहां वो पी रहे हैं चाय काफी चुस्कियां लेकर ।। […]

करों को चुकाने यार नंगे हो गये/दिलजीत सिंह रील

हम किसी को जिता के बदनाम हो गये । वो जीते क्या चुनाव गुम नाम हो गये।। हम तमाशा दूर से ही देखते रहे । वो गुलों को चुरा के गुलफाम हो गये।। सड़कों पर अपनी उनसे नज़र क्या मिली। दिलों के धड़कते वाहन जाम हो गये।। करों को चुकाने यार नंगे हो गये। दो […]

जो बाप हमारे हैं जी/दिलजीत सिंह रील

जो बाप हमारे हैं जी । वो पाप हमारे हैं जी ।। जो कुर्सी पर हैं बैठे । पद-चाप हमारे हैं जी।। मक्कार फरेबी नेता । संताप हमारे हैं जी ।। है वीर भगत की रस्सी। पर नाप हमारे हैं जी ।। आज़ाद तिरंगे पर भी । शुभ-छाप हमारे हैं जी ।। जो नभ पर […]

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