मैं क्या, नन्ही बूँद-सा, क्या मेरा विस्तार ?
बिना बूँद लेकिन कहाँ , सागर हुआ अपार !!1
चाँद न उतरा मन- गगन , द्वार न उतरी धूप ।
रहा बदलता रात – दिन , दर्द निगोड़ा रूप ।।2
कभी बढ़ाईं रोटियाँ , कभी घटाई दाल ।
रही गणित-सी ज़िन्दगी , उलझे रहे सवाल ।।3
दर्पण तोड़ा काग ने , हंस हुआ बदनाम ।
सिर पर लगा कपोत के , हत्या का इल्ज़ाम ।।4
घर फूँके जो और का , चले हमारे साथ ।
इतना मैंने क्या कहा , जुड़े हज़ारों हाथ !!5
राम – नाम कितना सधा , धो तो लिया शरीर ।
लगा पूछने कान में , हँसकर मस्त कबीर ।।6
रटे – रटाए पाठ पढ़ , मुद्रा कर गम्भीर ।
तोते कहते फिर रहे , ख़ुद को दास कबीर ।।7
किसे ख़बर निर्धन मरा, पल में सौ-सौ बार।
छींक अमीरी की हुई, छाप रहे अख़बार ।।8
कार नहीं , नौकर नहीं , पास न एक मकान ।
लगता है उसके अभी , पास बचा ईमान!!9
फूल हँसे , मौसम हँसा , हँसी साँझ तक धूप ।
कौन हँसा मन – द्वार पर , बदल – बदलकर रूप ।।10
सागर में नदिया मिली , मिला प्रेम का तीर ।
प्रीत सुहागिन हो गई , मिला नीर में नीर ।।11
क़दम – क़दम पर आँधियाँ ,दसों दिशा अंगार।
फिर भी मैं करने चला , काग़ज़ का व्यापार!!12
भारत भूषण आर्य