+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

याद बहुत आई मुझे, जब पीपल की छाँव/डॉ कृष्णकुमार नाज़

याद बहुत आई मुझे, जब पीपल की छाँव । सारे  बंधन  तोड़कर,  पहुँचा  अपने  गाँव ।।-1 इच्छाओं ने जब धरा, आशाओं  का  रूप। साँस-साँस सूरज उगे, पग-पग फैली धूप।।-2 या तो यह अभिशाप है, या कोई  वरदान। पलकों पर आँसू सजे, होंठों पर मुस्कान।।-3 बदल गई कुछ इस तरह नये जगत की चाल। सच्चाई   निर्धन   […]

सारा जग रोशन हुआ, रात हुई गुलजार/बिनोदानंद झा

कई मर्ज की है दवा, अपनेपन का भाव। खुश रहना जो चाहते, सबसे रखें लगाव।।-1 मां तुलसी-सी पूज्य हैं, पिता बरगदी छांव। भाव-करों से रोज ही, पूजें उनके पांव।।-2 सारा जग रोशन हुआ, रात हुई गुलजार। एक दीप के सामने, गया अंधेरा हार।।-3 एक झोपड़ी तोड़कर, महल बनाते चार। करते हैं भू माफिया, कपटी कारोबार।।-4 […]

जीवन भर करते रहे, सिर्फ़ एक ही काम/ गोविन्द सेन

बजा रहे हैं झुनझुना, जुटा रहे हैं भीड़ । अपने महलों के लिए, हाथी तोड़े नीड़ ।।-1 मित्र किताबों ने किया, दूर बहुत अवसाद । रद्दी  में  तुल  जाएँगी,   लेकिन  मेरे  बाद ।।-2 तन पर जितने दाग हैं, उनको तमगे मान । ये तमगे ही आजकल, दिलवाते सम्मान ।।-3 अपना दामन मत बचा, लगने दे […]

दोहा लिखना मेरा शौक नहीं, ज़िम्मेदारी है-जय चक्रवती

(समकालीन दोहे की दिशा और दशा के विभिन्न पहलुओं को लेकर गत दिनों सुपरिचित दोहाकार जय चक्रवर्ती से चर्चित दोहाकार शिवकुमार दीपक ने लंबी बात–चीत की। प्रस्तुत हैं उस बात–चीत के प्रमुख अंश) शिवकुमार दीपक : सर आप देश के ख्यातिलब्ध वरिष्ठ दोहाकार हैं, आप दोहे का उद्भव कहाँ से और कब से मानते हैं […]

साथ शिकारी के खड़े, सत्ता और वकील/जय चक्रवर्ती

जो कुछ कहना है मुझे, कह दूँगा दो टूक। छाती  पर  मेरी  भले , रख  दे  तू बंदूक ॥-1 चाहे तो कर दो भले, मुझको पंख विहीन। पर उड़ान का हौंसला, नहीं सकोगे छीन॥-2 मारे जाओगे भला, कब तक यहाँ अकाल। इस हत्यारे दौर से, कुछ  तो  करो  सवाल॥-3 तोड़ो अपनी चुप्पियाँ, तोड़ो अपने जाल। […]

जनता की आवाज ही, लोकतंत्र का मूल/सुरेशचन्द्र जोशी

जनता की आवाज ही, लोकतंत्र का मूल। इसे   दबाना  रौंदना, सरकारों  की  भूल।।-1 किसने रोका है तुम्हें, करते रहो प्रयास। जिसने किया प्रयास वे, रचते हैं इतिहास।।-2 जब तक तन में सांस है, जीवन है  श्रीमान। श्वास  गई तो देह को, केवल  माटी जान।।-3 जीवनभर करता रहा, एक तीन का पाँच। जो बोया सो काट […]

भक्त सदा आतुर रहें/डॉ. अमर सिंह सैनी

भक्त सदा आतुर रहें, दर्शन को निष्काम | भावों में खोए रहें, निश-दिन आठों याम ||-1 सिमट  रही है  जिंदगी,  बदल रहे जज्बात | शांति सभी को चाहिए, नहीं किसी से बात ||-2 सरल सफल शिक्षक रहा, बांट रहा हूँ ज्ञान | परहित करता आज भी, लोग करें सम्मान ||-3 बात न  माने  मात की, […]

प्रीत सुहागिन हो गई , मिला नीर में नीर/भारत भूषण आर्य

मैं क्या, नन्ही बूँद-सा, क्या मेरा विस्तार ? बिना बूँद लेकिन कहाँ , सागर हुआ अपार !!1 चाँद न उतरा मन- गगन , द्वार न उतरी धूप । रहा बदलता रात – दिन , दर्द निगोड़ा रूप ।।2 कभी बढ़ाईं रोटियाँ , कभी घटाई दाल । रही गणित-सी ज़िन्दगी , उलझे  रहे सवाल ।।3 दर्पण […]

मेरे हैं भगवान पिताजी/शिव कुमार दीपक

घर की हैं मुस्कान पिताजी । मेरे हैं भगवान पिताजी ।। माँ है मेरी धरती जैसी, हैं आकाश समान पिताजी । माता घर की नींव सरीखी, सिर को ढके मकान पिताजी । माँ है गीता रामायण- सी, बातों से विज्ञान पिताजी । रात – दिना वे महनत करते, हैं मजदूर किसान पिताजी । आफत आयी […]

आओ सीचें प्रेम से, अपना हिंदुस्तान/शिव कुमार ‘दीपक’

मौन और मुस्कान हैं, जीवन के हथियार । पहला रक्षा कवच है,  दूजा स्वागत द्वार ।।-1 सज्जन संग न कीजिये, कभी बुरा व्यवहार । वरना  सुंदर  कांच  भी,  टूट  बने  हथियार ।।-2 कोशिश अंतिम सांस तक, करें आप श्रीमान । लक्ष्य  मिलेगा  आपको ,  या  पाओगे  ज्ञान ।।-3 बिलख-बिलख रोता रहा, तजना पड़ा शरीर। मिलकर  […]

×