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करो न जीवन में कभी/डॉ. शंकर शरण लाल बत्ता

करो न जीवन में कभी, ऐसा खोटा काम।

जिसके पश्चाताप में, बीते उम्र तमाम।।-1

कल क्या होगा भूल जा , मत कर कल को याद।

अच्छा हो यदि आज से, कर ले तू संवाद ।।-2

करते जो माँ-बाप की, सेवा भली प्रकार ।

खुल जाते उनके लिए, स्वत:  स्वर्ग के द्वार।।-3

उगता सूरज भोर का, देता है संदेश।

हुआ एक दिन और गत, था जीवन जो शेष।।-4

कुछ कहते , कुछ सोचते, करते हैं कुछ और।

ऐसों का ही चल रहा, वर्तमान में दौर।।-5

आ जाता है एक दिन, इस जीवन का अंत ।

तृष्णा कम होती नहीं, पर जीवन पर्यंत ।।-6

सुख भोगें गुणहीन नर, दुख भोगें गुणवान ।

कीर  पींजरे में रहे, कागा भरे उड़ान।।-7

एक ओर सद्ग्रंथ हो, एक ओर हों रत्न ।

रत्न त्याग सद्ग्रंथ की, करो प्राप्ति का यत्न ।।-8

सदा न सरसों फूलती, सदा न उगती धान।

सदा नहीं यौवन रहा, सदा न रहे गुमान।।-9

कोयल मगन बसंत में, वर्षा ऋतु में मोर।

काग कनागत में मगन, रात अंधेरी चोर।।-10

पत्ता टूटा शाख से, हवा ले गई दूर ।

कभी न होगी भेंट अब, नियति बड़ी है क्रूर।।-11

बने न मानव देवता, बने न दानव जात।

मानव मानव ही रहे, यही बड़ी है बात।।-12

डॉ. शंकर शरण लाल बत्ता

लेखक

  • डॉ. शंकर शरण लाल बत्ता

    डॉ. शंकर शरण लाल बत्ता पिता: स्व. कविरत्न दामोदर दास बत्ता माता : स्व. धनकुंवरि बत्ता जन्म तिथि: २३-७-१९३७ शिक्षा: एम.ए., एल.टी. व्यवसाय: सेवानिवृत उपसंचालक, शिक्षा, म.प्र.शासन.

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