+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

एक पठनीय कृति : दर्पण समय का/राजेन्द्र वर्मा

राजेन्द्र वर्मा ‘दर्पण समय का’ चर्चित कवि, श्री हरीलाल मिलन का दोहा-संग्रह है। उनके दोहे समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं और दोहा-संकलनों में प्रकाशित होते रहे हैं और हिंदी काव्य-जगत से समादृत होते रहे हैं। उनके दोहों में जहाँ मानवता, देशभक्ति, नीति आदि पर्याप्त स्थान पाते रहे हैं, वहीं उनमें युग की पीड़ा का भी मार्मिक चित्रण […]

उनका ही टी.वी. हुआ/राजेन्द्र वर्मा

कठिन  तपस्या  से  मिला,  हमको  ऐसा  राज। कुछ को छप्पन भोग तो, कुछ को सड़ा अनाज।।-1 आरक्षण से हो रहा, जिनका हृदय अशांत। वे  कैसे  लागू  करें, समता  का  सिद्धांत ॥-2 इधर तनी बंदूक है , उधर भौंकते श्वान। हिटलर बैठा बाँटता, लोकतंत्र का ज्ञान॥-3 उनका ही टी.वी. हुआ, उनका ही अख़बार। अब ख़बरें  वे  […]

आओ दोहा लिखें/रघुविन्द्र यादव

आज दोहा लोकप्रियता के शिखर पर, इसलिए हर रचनाकार चाहता है कि वह भी दोहे लिखे| किन्तु दोहा जितना छोटा और सीधा दिखता है, लिखना उतना सरल नहीं है| परिणामस्वरूप बहुत कम लोग ही मानक दोहे लिख पाते हैं| क्योंकि- दीरघ दोहा अर्थ के, आखर थोरे आहि| ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूद चलि जाहि|| […]

सोच रही है द्रौपदी/रघुविन्द्र यादव

दिनभर खायी मछलियाँ, किया रात को जाप। बगुले  ने  यूँ  धो  लिये,      अपने  सारे  पाप।।-1 खेती-बाड़ी का नहीं, जिन्हें तनिक भी ज्ञान| बना  रहे  वे  नीतियाँ,   कैसे  बचें  किसान?-2 दीपक का  होता रहा, हर  युग  में  गुणगान| किसने रेखांकित किया, बाती का बलिदान||-3 जला  उम्रभर  दीप- सा,    करता  रहा  उजास| उसकी खातिर अब कहाँ, वक़्त […]

निर्दोष दोहे कैसे लिखें/राजेन्द्र वर्मा

एक अच्छे दोहे की रचना के लिए चार बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है : लय, तुकांत, भाषा और भाव-संयोजन 1- लय जहाँ तक लय का संबंध है, सभी दोहाकार जानते हैं कि दोहे में चार चरण होते हैं : पहला और तीसरा तेरह मात्राओं का तथा दूसरा और चौथा ग्यारह का। लेकिन लय सुनिश्चित […]

जिनका सरल स्वभाव है, मिलता उन्हें दुलार/त्रिलोक सिंह ठकुरेला

भावों की चिर सम्पदा, होती सदा अमोल । निष्ठुर मन के सामने, ये गठरी  मत खोल ।।-1 जाने क्या हो किस घड़ी, किसको यह आभास । कहाँ  राम को राजसुख , कहाँ विषम वनवास ।।-2 जिनका सरल स्वभाव है, मिलता उन्हें  दुलार । सागर  सूखें  प्रेम  के,  देख  कुटिल  व्यवहार ।।-3 बहती  है  जीवन  नदी, […]

समकालीन दोहा को तराशने व सँवारने की जरूरत/शिवकुमार दीपक

दोहा हिंदी काव्य विधा का अत्यंत सशक्त स्वतंत्र लघुरूपी छंद है ,जो सैकड़ों वर्षों से अपनी महत्ता को मनवाता आ रहा है । आकार में छोटा होने के बावजूद बड़ी खूबसूरती के साथ संसार के अधिकांश विषयों को अपने में सहज लेने की सामर्थ्य रखता है । दोहा प्राचीन काल से आज तक जन मानस […]

दीन व्यक्ति पर कीजिए/दिनेश प्रताप सिंह चौहान

रावण के वध में भला, क्या था मेरा काम। ‘मैं’ ने  मारा  था  उसे, बोले  माँ  से  राम।।-1 कई जन्म के पुण्य जब, फलते हैं सरकार। तब इस मानव योनि का, दे ईश्वर उपहार।।-2 दौलत में जो है नशा, कब दे  सकी  शराब। माया का होता नशा, सबसे अधिक खराब।।-3 सेवा मानव जाति की, मानें […]

नेह बहन का ढुलक जब/डॉ. जे. पी. बघेल

नेह बहन का ढुलक जब, झरे नयन के पार । भाई का तब देखिए, झांक आँख  से  प्यार ।।-1 मानव के प्रति प्रेम का, जिसके मन में वास । आता  है  कर्त्तव्य का, बोध  उसी  के पास ।।-2 मिला बड़ों से जब मुझे, प्रेम सहित आशीष । मन  मेरा  जो रंक था, पल  में  हुआ  […]

भीतर भीतर रम गया/हरीलाल ‘मिलन ‘

भीतर भीतर रम गया, क्या  गृहस्थ क्या संत । न तो प्रेम का आदि है,  न  ही   प्रेम का अंत ।।-1 मन -मंदिर में थी बसी,  कोई    मूर्ति  महान । प्राण-प्रतिष्ठा कर गई,   अधरों   की मुस्कान ।।-2 सच ही कहा  कबीर  ने,  वही  सिद्ध  विद्वान । ‘ढाई आखर ‘ प्रेम का,  जिसे  हो  गया  ज्ञान […]

×