इक दिन मुझे भी प्यार की तहरीर मिल गई
ऐसा लगा कि खुशियों की जागीर मिल गई
जीती हूँ मस्त हाल में खुशहाल हो के मैं
सारे हसीन ख़ाबों की ताबीर मिल गई
लिखती हूँ अपने मन की ही बेफ़िक्र हो के मैं
जैसे क़लम नहीं कोई शमशीर मिल गई
होता है ज़िक्र आपका जब भी कभी कहीं
लगता है जैसे ग़म की ही जागीर मिल गई
सोचा न था कभी वही सब हो रहा है अब
सहरा में भी बहार की तासीर मिल गई
कामना मिश्रा
लेखक
-
कामना मिश्रा दिल्ली, भारत शिक्षा- BSc.Botany .Hons , खालसा कॉलेज,नार्थ कैम्पस दिल्ली विश्वविद्यालय NIIT में English Facilitator and Interview Skills expert की नौकरी Kamna Classes -- मेरा कोचिंग सेंटर English Speaking Skill expert and Personality Groomer, English Teacher समाज सेविका शिक्षाविद
View all posts