वक़्त इक संग को शाहकार भी कर सकता है
बिकने वाले को ख़रीदार भी कर सकता है
लाख फ़ितने करें याजूज वो माजूज़ मगर
अहल ए ईमां उन्हें लाचार भी कर सकता है
दावत ए इश्क़ की बेजा न करो ना क़दरी
ये अमल इश्क़ को बेज़ार भी कर सकता है
गोश ए लब है तबस्सुम की क़बा ओढ़े हुए
ये किसी दिल को गिरफ़्तार भी कर सकता है
इक वो मंज़िल जो तड़पती हो लिपटने के लिए
इक मुसाफ़िर है जो इंकार भी कर सकता है
हौसला चाहे तो रातों में उगा दे सूरज
धूप में साया ए दीवार भी कर सकता है
हुस्न ए बे पर्दा से ईमान जो होता है ज़आईफ़
पारसाओं को गुनहगार भी कर सकता है
जुग्नूओ ख़्वाब न महताब का तू देखा कर
ये ज़माने में तुझे ख़्वार भी कर सकता है
उल्फ़तें जीने का आया है सलीक़ा मुझ में
अब मसीहा मुझे बीमार भी कर सकता है
सजदा ए इश्क़ से ना बल्द न अख़्तर हो शबाब
वक़्त ए पीरी तुझे बेकार भी कर सकता है
मो. शकील अख़्तर
मआनी
शहकार – नमूना,master piece
फ़ितने – फ़साद
याजूज माजूज – दो फ़सादी क़ौम
ख़्वार – रूस्वा
ना बल्द – ना वाक़िफ़,अंजान
पीरी- बुढ़ापा