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अंगड़ाई जो आंखें उन की/मो. शकील अख़्तर

शोख़ मंज़र रुख़े ज़ेबा का लुभाता है मुझे
रोज़ ख़्वाबों में मेरे आ के सताता है मुझे

दफ़अतन लेती हैं अंगड़ाई जो आंखें उन की
कोई काजल के शबिस्तां में बिठाता है मुझे

मैं कभी बन्द समाअत का अगर दर खोलूं
नग़मए इश्क़ वो बरबत से सुनाता है मुझे

हमसफ़र है वो मेरा पर हमा तन गोश नहीं
तुर्श रूई के तसल्सुल से जलाता है मुझे

लम्से आग़ोशे अना देता है थपकी दिल को
हिज़्र इदराक की बांहों में सुलाता है मुझे

अब तो लगता है अना को ही कुचलनी होगी
कोई भीगी हुई पलकों से बुलाता है मुझे

अपने माज़ी के सभी दौर उठा लाता हूं
कोई तारीख़ के पन्नों से चुराता है मुझे

ज़िन्दगी जब्र मुसल्सल से डराती है इधर
और उधर ज़ाएक़ए मौत बुलाता है मुझे

न कोई रंज है अपना ना ही उन का है मलाल
बेख़ुदी का कोई तिरयाक़ गंवाता है मुझे

वो मेरी नस्ल मिटा देगा जड़ों से अख़तर
कर के एलान वो कम अक़्ल डराता है मुझे

मो. शकील अख़्तर

लेखक

  • संक्षिप्त परिचय नाम : मो. शकील अख़्तर तख़ल्लुस :अख़्तर जन्म : 04.02.1955 पता: उर्दू बाज़ार ,दरभंगा           बिहार 846004 कार्य :  सेवा निवृत्त बैंक प्रबंधक रचना: विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में                 प्रकाशित            दो साझा ग़ज़ल संग्रहों में प्रकाशित  कई ग़ज़लें           एक ग़ज़ल संग्रह " एहसास की ख़ुशबू" नाम से,            जिज्ञासा प्रकाशन , ग़ाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित

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