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पद

नागमती-संदेश-खंड-31 पद्मावत/जायसी

फिरि फिरि रोव, कोइ नहीं डोला । आधी राति बिहंगम बोला ॥ “तू फिरि फिरि दाहै सब पाँखी । केहि दुख रैनि न लावसि आँखी” नागमती कारन कै रोई । का सोवै जो कंत-बिछोई ॥ मनचित हुँते न उतरै मोरे । नैन क जल चुकि रहा न मोरे ॥ कोइ न जाइ ओहि सिंगलदीपा । […]

प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे/नानकदेव

प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे। प्रेम-भगति निज नाम दीजिये, द्याल अनुग्रह धारे॥ सुमिरौं चरन तिहारे प्रीतम, ह्रदै तिहारी आसा। संत जनाँपै करौं बेनती, मन दरसन कौ प्यासा॥ बिछुरत मरन, जीवन हरि मिलते, जनको दरसन दीजै। नाम अधार, जीवन-धन नानक प्रभु मेरे किरपा कीजै॥

राम सुमिर, राम सुमिर/नानकदेव

राम सुमिर, राम सुमिर, एही तेरो काज है॥ मायाकौ संग त्याग, हरिजूकी सरन लाग। जगत सुख मान मिथ्या, झूठौ सब साज है॥ सुपने ज्यों धन पिछान, काहे पर करत मान। बारूकी भीत तैसें, बसुधाकौ राज है॥ नानक जन कहत बात, बिनसि जैहै तेरो गात। छिन छिन करि गयौ काल्ह तैसे जात आज है॥

जगत में झूठी देखी प्रीत/नानकदेव

जगत में झूठी देखी प्रीत। अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥ मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत। अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥ मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत। नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥

जो नर दुख में दुख नहिं मानै/नानकदेव

जो नर दुख में दुख नहिं मानै। सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।। नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ-मोह अभिमाना। हरष शोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना।। आसा मनसा सकल त्यागि के, जग तें रहै निरासा। काम, क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।। गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं, तिन्ह […]

को काहू को भाई/नानकदेव

हरि बिनु तेरो को न सहाई। काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥ धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई। तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥ दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई। नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥

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